Saturday, 23 January 2016

शून्य-लक्षणं / śūnya-lakṣaṇaṃ

अद्य रचितं मया
शून्य-लक्षणं
औन्यं प्रवर्तते नित्यं
युज्यते वा वियुज्यते ।
शकारो प्रसुप्तो व्याप्तो
अविकारी च शाश्वतः ॥
--
अर्थ
अविकारी श् श कार (शून्य)  किसी भी दूसरे वर्ण अर्थात् अंक से युक्त / संलग्न होकर भी प्रच्छन्न, अविकारी और अलिप्त ही रहता है । इस प्रकार वह जगत का अनंत विस्तार करता हुआ उसका बीज, स्थायित्व तथा संहार का एकमात्र अधिष्ठान हैं।
ॐ नमः शिवाय ।
ॐ नमः शून्याय शिवस्वरूपाय ।।
--
Significance of    0
śūnya-lakṣaṇaṃ
aunyaṃ pravartate nityaṃ
yujyate vā viyujyate |
śakāro prasupto vyāpto
avikārī ca śāśvataḥ ||
--
Immutable letter / symbol श् श / 0 joining or disjointing with others, stays so ever, unaffected though gives existence, glory and dissolution to the whole world. This is the seed, manifestation and dissolution of All and everything.
I bow to shiva,
I bow to 0 .
--

No comments:

Post a Comment