Tuesday, 5 May 2015

प्रतिमा / pratimā

प्रतिमा / pratimā
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प्रति उपसर्ग का प्रयोग विपरीत / opposite, शत्रुतापूर्ण / against,  सामने / facing , तुलना / comparison दर्शाने में होता है,
'प्रतिकूल' का अर्थ है विरोधी, शत्रुतापूर्ण ।
'प्रतिबोध' का अर्थ है प्रत्युत्तर response,
'प्रतिबिम्ब' अर्थ है समान आकृति / reflection.
'प्रतिछाया' का अर्थ है छाया shadow या प्रत्याकृति / image,
'प्रतिमूर्ति' का अर्थ है एकदम यथार्थ जैसी आकृति चित्र या वास्तु के रूप में त्रि-आयामी या कलात्मक।
इसलिए एक राग (स्वरों का विशिष्ट संयोजन) 'देवता' के स्वरूप की साक्षात अभिव्यक्ति हो सकता है ।
इसलिए एक स्वर-वर्ण संयोजन (मंत्र-विशेष) भी इसी तरह 'देवता' के स्वरूप की साक्षात अभिव्यक्ति हो सकता है । इस प्रकार 'साम' स्तुति के लिए 'प्रतिमा' समान है ।
इसलिए ॐ अपने विशुद्ध स्वरूप में परमात्मा की ही साक्षात् अभिव्यक्ति है ।
'मान' पद (शब्द) 'मा' > पूजायाम् > पूजा के अर्थ में, 'स्तम्भे' > स्थापित करने के अर्थ में 'मा' धातु से बनता है ।
'प्रतिमान' का अर्थ हुआ आदर्श / standard  / criteria / equivalent
'प्रतिमा' का अर्थ / तात्पर्य अब आप स्वयं तय कीजिए ।
'प्रतिमा' का एक अर्थ होता है 'उपमा' > सन्निकट स्वरूप ।        
जैसा कि श्वेताश्वतर उपनिषद् अध्याय 4, श्लोक 4, में है,
(गीताप्रेस गोरखपुर 'ईशादि नौ उपनिषद्'  में यही अर्थ स्पष्ट है),
(ISBN 81-293-0308-6)
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नैनमूर्ध्वम् न तिर्यञ्चम् न मध्ये परिजग्रभत् ।
न  तस्य प्रतिमा अस्ति यस्य नाम महद्यशः ॥
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यहाँ उल्लेखनीय है कि  मूर्तिपूजा के विरोधी कुछ लोग इस मन्त्र  / श्लोक को इस प्रमाण के रूप में प्रस्तुत करते हैं कि इस उपनिषद में ईश्वर की मूर्ति नहीं हो सकती, ऐसा प्रतिपादित किया गया है ।
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