आज की संस्कृत रचना
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सुमेरुः ऊर्ध्वं यस्याः दक्षिणे गणनायकः ।
हंसवाहिनि नमस्तुभ्यं विद्यादानञ्च देहि मे ॥
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sumeruḥ ūrdhvaṃ yasyāḥ dakṣiṇe gaṇanāyakaḥ ।
haṃsavāhini namastubhyaṃ vidyādānañca dehi me ||
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भावार्थ :
जिसके ऊर्ध्व में सुमेरु है, और दक्षिण में गणनाथ हैं,
हे हंसवाहिनि सरस्वती माता, तुम्हें मेरा प्रणाम है ।
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Meaning :
One having The Great Sumeru at the corona, and gaNesha at the right, O haṃsavāhini! My obeisance to you, Give me knowledge and skill.
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कृत्वा जगत् दृष्टिबाह्यं स्मरेत्यो इष्टं प्रभुम् ।
त्वरितमाप्नोति सान्निध्यं शिप्रं हि प्रभुकृपाम् ॥
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भावार्थ :
संसार को दृष्टि से हटाकर (अपने नेत्र बन्दकर और मन से भी संसार के किसी भी विषय का चिन्तन न करते हुए), जो इष्ट प्रभु का स्मरण (ध्यान) करता है, उसे शीघ्र ही प्रभु का सान्निध्य और कृपा प्राप्त हो जाती है ।
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kṛtvā jagat dṛṣṭibāhyaṃ smaretyo iṣṭaṃ prabhum |
tvaritamāpnoti sānnidhyaṃ śipraṃ hi prabhukṛpām ||
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Meaning :
One who having removed the attention of the world from the mind, having closed the eyes meditates over and thinks of the Lord Beloved, soon accomplishes His vicinity and Grace.
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सुमेरुः ऊर्ध्वं यस्याः दक्षिणे गणनायकः ।
हंसवाहिनि नमस्तुभ्यं विद्यादानञ्च देहि मे ॥
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sumeruḥ ūrdhvaṃ yasyāḥ dakṣiṇe gaṇanāyakaḥ ।
haṃsavāhini namastubhyaṃ vidyādānañca dehi me ||
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भावार्थ :
जिसके ऊर्ध्व में सुमेरु है, और दक्षिण में गणनाथ हैं,
हे हंसवाहिनि सरस्वती माता, तुम्हें मेरा प्रणाम है ।
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Meaning :
One having The Great Sumeru at the corona, and gaNesha at the right, O haṃsavāhini! My obeisance to you, Give me knowledge and skill.
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कृत्वा जगत् दृष्टिबाह्यं स्मरेत्यो इष्टं प्रभुम् ।
त्वरितमाप्नोति सान्निध्यं शिप्रं हि प्रभुकृपाम् ॥
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भावार्थ :
संसार को दृष्टि से हटाकर (अपने नेत्र बन्दकर और मन से भी संसार के किसी भी विषय का चिन्तन न करते हुए), जो इष्ट प्रभु का स्मरण (ध्यान) करता है, उसे शीघ्र ही प्रभु का सान्निध्य और कृपा प्राप्त हो जाती है ।
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kṛtvā jagat dṛṣṭibāhyaṃ smaretyo iṣṭaṃ prabhum |
tvaritamāpnoti sānnidhyaṃ śipraṃ hi prabhukṛpām ||
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Meaning :
One who having removed the attention of the world from the mind, having closed the eyes meditates over and thinks of the Lord Beloved, soon accomplishes His vicinity and Grace.
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