नन्द् -[समृद्धौ, नन्दति, नन्दित, नन्दयति, निनन्दयति, नन्द्यते] खुश होना,
नन्द - प्रसन्न, श्रीकृष्ण के पालक पिता, (नन्द-यशोदा), नन्दी दुर्गा,
नन्दक - विष्णु की तलवार,
नन्दन -[आनन्दयिता] -प्रसन्न होने / करनेवाल, नन्दनम् - इन्द्र का उपवन, नन्दनः सन्तान, पुत्र, नन्दना पुत्री,
नन्दनद्रुम - नन्दनवन् के वृक्ष
अभिज्ञाश्छेदपातानां क्रियन्ते नन्दनद्रुमाः (कुमारसंभवम्, 2)
नन्दिक / नन्दिन् / नन्दी / शिव का वृषभ.
नन्दिग्राम वह गाँव जहाँ श्रीराम के वनवास के समय भरत रहे थे ।
नन्दिघोष - अर्जुन के रथ का नाम,
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कठोपनिषद् अध्याय 1 , वल्ली प्रथमा
ॐ उशन् ह वै वाजश्रवसः सर्व वेदसं ददौ । तस्य ह नचिकेता नाम पुत्र आस् ॥1॥
अर्थ : (उष् - उशन् > जलाना, यज्ञ करना, उशन् - यज्ञ के द्वारा स्वर्ग और समृद्धि, आयु आदि की प्राप्ति करने का अभिलाषी ) वाजश्रवा के पुत्र, यज्ञ के द्वारा संसार से मुक्ति की अभिलाषा से विश्वजित् नामक यज्ञ का अनुष्ठान किया, जिसमें उसने अपना सारा धन आदि ब्राह्मणों को दान दे दिया । वाजश्रवा का एक पुत्र था जिसका नाम नचिकेता था ।
तम् ह कुमारम् सन्तम् दक्षिणासु नीयमानासु श्रद्धाऽऽविवेश सोऽमन्यत ॥2॥
अर्थ : वह अभी कुमार ही था जब उसने देखा कि ब्राह्मणों को दक्षिणा के रूप में देने हेतु गायों को ले जाया जा रहा है । और उन गायों को देखकर उसका हृदय दुःख से कातर हुआ, वह सोचने लगा,...
पीतोदका जग्धतृणा दुग्धदोहा निरीन्द्रियाः ।
अनन्दा नाम ते लोकास्तान् स गच्छति ता ददत् ॥
(कठोपनिषद् 1-1-3)
जिन्होंने अन्तिम बार जल पी लिया है, अर्थात् अब जल भी त्याग चुकी हैं, जिन्होंने तृण खा लिए हैं अर्थात् अब अन्न भी त्याग चुकी हैं, जिन्हें पूरी तरह दुह लिया गया है अर्थात् अब उनसे दुग्ध या वत्स की आशा नहीं की जा सकती, जो मनुष्य ऐसी गाएँ दान में देता है, वह दानदाता, अनन्द नामक लोकों को प्राप्त होता है । अनन्द अर्थात् जहाँ कोई सुख-शान्ति नहीं है ।
आ प्रत्यय के साथ आनन्द, अभि प्रत्यय के साथ अभिनन्दन, प्रत्यय के साथ अनन्द,
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नन्द - प्रसन्न, श्रीकृष्ण के पालक पिता, (नन्द-यशोदा), नन्दी दुर्गा,
नन्दक - विष्णु की तलवार,
नन्दन -[आनन्दयिता] -प्रसन्न होने / करनेवाल, नन्दनम् - इन्द्र का उपवन, नन्दनः सन्तान, पुत्र, नन्दना पुत्री,
नन्दनद्रुम - नन्दनवन् के वृक्ष
अभिज्ञाश्छेदपातानां क्रियन्ते नन्दनद्रुमाः (कुमारसंभवम्, 2)
नन्दिक / नन्दिन् / नन्दी / शिव का वृषभ.
नन्दिग्राम वह गाँव जहाँ श्रीराम के वनवास के समय भरत रहे थे ।
नन्दिघोष - अर्जुन के रथ का नाम,
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कठोपनिषद् अध्याय 1 , वल्ली प्रथमा
ॐ उशन् ह वै वाजश्रवसः सर्व वेदसं ददौ । तस्य ह नचिकेता नाम पुत्र आस् ॥1॥
अर्थ : (उष् - उशन् > जलाना, यज्ञ करना, उशन् - यज्ञ के द्वारा स्वर्ग और समृद्धि, आयु आदि की प्राप्ति करने का अभिलाषी ) वाजश्रवा के पुत्र, यज्ञ के द्वारा संसार से मुक्ति की अभिलाषा से विश्वजित् नामक यज्ञ का अनुष्ठान किया, जिसमें उसने अपना सारा धन आदि ब्राह्मणों को दान दे दिया । वाजश्रवा का एक पुत्र था जिसका नाम नचिकेता था ।
तम् ह कुमारम् सन्तम् दक्षिणासु नीयमानासु श्रद्धाऽऽविवेश सोऽमन्यत ॥2॥
अर्थ : वह अभी कुमार ही था जब उसने देखा कि ब्राह्मणों को दक्षिणा के रूप में देने हेतु गायों को ले जाया जा रहा है । और उन गायों को देखकर उसका हृदय दुःख से कातर हुआ, वह सोचने लगा,...
पीतोदका जग्धतृणा दुग्धदोहा निरीन्द्रियाः ।
अनन्दा नाम ते लोकास्तान् स गच्छति ता ददत् ॥
(कठोपनिषद् 1-1-3)
जिन्होंने अन्तिम बार जल पी लिया है, अर्थात् अब जल भी त्याग चुकी हैं, जिन्होंने तृण खा लिए हैं अर्थात् अब अन्न भी त्याग चुकी हैं, जिन्हें पूरी तरह दुह लिया गया है अर्थात् अब उनसे दुग्ध या वत्स की आशा नहीं की जा सकती, जो मनुष्य ऐसी गाएँ दान में देता है, वह दानदाता, अनन्द नामक लोकों को प्राप्त होता है । अनन्द अर्थात् जहाँ कोई सुख-शान्ति नहीं है ।
आ प्रत्यय के साथ आनन्द, अभि प्रत्यय के साथ अभिनन्दन, प्रत्यय के साथ अनन्द,
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