Skill, Thought, Talent, Idea and Wisdom.
------------------------------©------------------------------
मुण्डकोपनिषद्
~~~~~~~~~~~
प्रथम मुण्डक - प्रथम खण्ड
••••••••••••••••••••••••••
ॐ ब्रह्मा देवानां प्रथमः संबभूव
विश्वस्य कर्ता भुवनस्य गोप्ता।।
स ब्रह्मविद्यां सर्वविद्याप्रतिष्ठा-
मथर्वाय ज्येष्ठपुत्राय प्राह।।१।।
अथर्वणे यां प्रवदेत ब्रह्मा-
थर्वा तां पुरोवाचाङ्गिरे ब्रह्मविद्यां।।
स भारद्वाजाय सत्यवहाय
प्राह भारद्वाजोऽङ्गिरसे परावरम्।।२।।
शौनको वा महाशालो ह वै महाशालोऽङ्गिरसं विधिवदुपसन्नः पप्रच्छ।।
कस्मिन्नो भगवो विज्ञाते सर्वमिदं विज्ञातं भवितीति ।।३।।
तस्मै स होवाच। द्वे विद्ये वेदितव्ये इति ह स्म यद्ब्रह्मविदो वदन्ति परा चैवापरा च।।४।।
तत्रापरा ऋग्वेदो यजुर्वेदः सामवेदोऽथर्ववेदः शिक्षा कल्पो व्याकरणं निरुक्तं छन्दो ज्योतिषमिति।।
अथ परा यया तदक्षरमधिगम्यते।। ५।।
--
मुण्डक का अर्थ है मुखमण्डल।
मुण्डकोपनिषद् में 3 मुण्डक हैं, और प्रत्येक मुण्डक में पुनः दो खण्ड हैं। प्रथम मुण्डक, प्रथम खण्ड का प्रारंभ उपरोक्त पाँच मन्त्रों से होता है। देवताओं में सर्वप्रथम ब्रह्मा का प्राकट्य हुआ। प्राकट्य का अर्थ है, जो अप्रकट, अव्यक्त था, वही प्रकट और व्यक्त हो उठा। कथा में यद्यपि भूतकाल के परिप्रेक्ष्य में, काल को अतीत की तरह, सन्दर्भ में रखा गया है, किन्तु इससे यह नहीं समझा जाना चाहिए कि इस प्रसंग का संबंध किसी सुदूर या संनिकट अतीत से है, क्योंकि काल का अनुमान बुद्धि से ही होता है, और तब उसी काल का वर्गीकरण शाश्वत्, सनातन, चिरन्तन, नित्य, वर्तमान और अनित्य आदि में किया जाता है। इस प्रकार काल को अव्यक्त, अप्रकट और पुनः व्यक्त और प्रकट रूपों में जाना जाता है। यह जाननेवाला, जिससे काल का जन्म होता है, स्वयं ही काल और काल से परे भी अक्षरस्वरूप पुरुष है।
अक्षरात्संजायते कालः कालाद् व्यापकः उच्यते। व्यापको हि भगवान् रुद्रो भोगायमानो यदा शेते... रुद्रः संहार्यते प्रजाः।।
(शिव-अथर्वशीर्ष)
यह संदर्भ इसलिए दिया गया ताकि स्पष्ट हो कि यहाँ भूतकाल का प्रयोग व्याकरण की दृष्टि से औपचारिक व्यवहार और प्रयोग के लिए किया गया है।
"आब्रह्मभुवनाल्लोका", "अव्यक्तादीनि भूतानि" के तथा "सर्वं खल्विदं ब्रह्म" के अनुसार किसी समय आब्रह्म, जो कि अव्यक्त और प्रकट था, तथा जिसने व्यक्त और प्रकट रूप ग्रहण किया, उसे ही यहाँ औपचारिक रूप से ब्रह्मा कहा गया है।
इस प्रकार देवताओं में सर्वप्रथम ब्रह्मा हुए। यही प्रथम तत्त्व जो बुद्धि (Wisdom) है, उसके सक्रिय होने के बाद ही अन्य सब जाना जाता है, जिनमें से काल भी एक बुद्धिजनित, बुद्धिगम्य, बुद्धिग्राह्य वास्तविकता है।
चेतना (consciousness), बुद्धि (Wisdom) और ब्रह्मा (Creator) परस्पर पर्याय (synonyms) हैं।
इससे ही समस्त भुवनों (लोकों) की सृष्टि होती है / हुई, और इसके ही द्वारा उनकी सुरक्षा की जाती है। इस प्रकार सृष्टि की इस ब्रह्मविद्या ही दूसरी भी समस्त विद्याओं का अधिष्ठान है।
ब्रह्मा ने इसी ब्रह्मविद्या का उपदेश अपने ज्येष्ठपुत्र अथर्वा को दिया। अथर्वा को ब्रह्मा ने जिस ब्रह्मविद्या का उपदेश प्रदान किया, उसे ही अथर्वा ने अङ्गिरस को प्रदान किया। उसे ही पुनः अङ्गिरा ने भरद्वाज को प्रदान किया और उसे भरद्वाज सत्यवह ने भारद्वाज को या अङ्गिरस को प्रदान किया। इस प्रकार क्रमशः इस ब्रह्मविद्या का अवतरण जगत् में हुआ।
पर से अवर, उच्चतर से अन्य, अपेक्षाकृत निम्न श्रेणी तक इस विद्या के ज्ञान का संप्रेषण हुआ।।१,२।।
***
Next:
Being Transplanted
***
No comments:
Post a Comment