कविता : 28-06-2021
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निजता
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सत् और चित्, अस्तित्व और भान,
परस्पर अभिन्न, कितने अविच्छिन्न!
अस्तित्व यदि नहीं, तो भान कहाँ!
भान यदि नहीं, तो अस्तित्व क्या!
वैसे ही परस्पर जैसे, मैं-संसार!
मैं यदि नहीं, तो कहाँ संसार कोई,
संसार यदि नहीं, तो मैं भी कहाँ!
फिर भी है जो, सनातन, चिरंतन,
आत्मा, जीव, ईश्वर, जड-चेतन,
जिसमें होता है, काल-स्थान,
अविनश्वर अस्तित्व, जो भान,
निजता की, अमिट पहचान!
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