भोजनेन द्वैतं तीर्त्वा भजनेनद्वैतं लभेत्।।
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भोजनं प्रथमं कुर्यात् भजनं तत् अनन्तरम् ।
भोजनेन द्वैतं तीर्त्वा भजनेन अद्वैतं लभेत्।।
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मनुष्य को पहले भोजन और उसके बाद ही भजन करना चाहिए। भोजन से भोक्ता, भोज्य (कर्म) और भोजन (कार्य) के बीच के द्वैत आदि से निवृत्त होने पर फिर भजन के द्वारा अद्वैत की प्राप्ति होती है।
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शायद
"भूखे भजन न होय गोपाला"
इसे ही कहने का दूसरा तरीका है।
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