किसी समय शङ्कराचार्यकृत
"भज गोविन्दम्"
का एक श्लोक यहाँ पोस्ट किया था।
Someone commented :
The translation of "आशा" is not "hope", but "desire".
I felt a bit curious and tried to check this.
Two references came to my mind :
कठोपनिषद् १ / १ /
आशाप्रतीक्षे संगत्ँ सूनृतां च
इष्टापूर्ते पुत्रपशूंश्च सर्वान् ।
एतद् वृङ्क्ते पुरुषस्याल्पमेधसो
यस्यानश्नन् वसति ब्राह्मणो गृहे।।८
Here "आशा" means "hope" only.
विवेकचूडामणि श्लोक :
अमृतत्वस्य नाशास्ति वित्तेनेत्येव हि श्रुतिः।
ब्रवीति कर्मणो मुक्तेरहेतुत्वं स्फुटं यतः।।७
Here again "आशा" means "hope" only.
I just couldn't understand why "आशा" should be translated "desire", and not "hope" !
--
No comments:
Post a Comment