Saturday, 17 April 2021

तदपि न मुञ्चत्याशावायुः

 किसी समय शङ्कराचार्यकृत 

"भज गोविन्दम्" 

का एक श्लोक यहाँ पोस्ट किया था। 

Someone commented :

The translation of "आशा" is not "hope", but "desire".

I felt a bit curious and tried to check this. 

Two references came to my mind :

कठोपनिषद् १ / १ /

आशाप्रतीक्षे संगत्ँ सूनृतां च

इष्टापूर्ते पुत्रपशूंश्च सर्वान् ।

एतद् वृङ्क्ते पुरुषस्याल्पमेधसो 

यस्यानश्नन् वसति ब्राह्मणो गृहे।।८

Here "आशा" means "hope" only.

विवेकचूडामणि श्लोक :

अमृतत्वस्य नाशास्ति वित्तेनेत्येव हि श्रुतिः।

ब्रवीति कर्मणो मुक्तेरहेतुत्वं स्फुटं यतः।।७

Here again "आशा" means "hope" only.

I just couldn't understand why "आशा" should be translated "desire", and not "hope" !

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