कैन तथा ऐबल
वाल्मीकि-रामायण,
अरण्यकाण्डे एकादशः सर्गः
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पश्यन् वनानि चित्राणि पर्वतांश्चाभ्रसंनिधान् ।
सरांसि सरितश्चैव पथि मार्गवशानुगान् ॥४५
सुतीक्ष्णेनोपदिष्टेन गत्वा तेन पथा सुखम् ।
इदं परमसंहृष्टो वाक्यं लक्षमणमब्रवीत ॥४६
...
...
ततः सुतीक्ष्णवचनं यथा सौम्य मया श्रुतम् ।
अगस्त्याश्रमो भ्रातुर्नूनमेष भविष्यति ॥५३
निगृह्य तरसा मृत्युं लोकानां हितकाम्यया ।
यस्य भ्रात्रा कृतेयं दिक्शरण्या पुण्यकर्मणा ॥५४
इहैकदा किल क्रूरो वातापिरपि चेल्वलः ।
भ्रातरौ सहितावास्तां ब्राह्मणघ्नौ महासुरौ ॥५५
धारयन् ब्राह्मणं रूपमिल्वलः संस्कृतं वदन् ।
आमन्त्रयति विप्रान् स श्राद्धमुद्दिश्य निर्घृणः ॥५६
भ्रातरं संस्कृतं कृत्वा ततस्तं मेषरूपिणम् ।
तान् द्विजान् भोजयामास श्राद्धदृष्टेन कर्मणा ॥५७
ततो भुक्तवतां तेषां विप्राणामिल्वलोऽब्रवीत् ।
वातापि निष्क्रमस्वेति स्वरेण महता वदन् ॥५८
ततो भ्रातुर्वचः श्रुत्वा वातापिर्मेषवन्नदन् ।
भित्त्वा भित्त्वा शरीराणि ब्राह्मणानां विनिष्पतत् ॥५९
ब्राह्मणानां सहस्राणि तैरेवं कामरूपिभिः ।
विनाशितानि संहत्य नित्यशः पिशिताशनैः ॥६०
अगस्त्येन तदा देवैः प्रार्थितेन महर्षिणा ।
अनुभूय किल श्राद्धे भक्षितः स महासुरः ॥६१
ततः सम्पन्नमित्युक्त्वा दत्वा हस्तेऽवनेजनम्
भ्रातरं निष्क्रमस्वेति चेल्वलः समभाषत ॥६२
स तदा भाषमाणं तु भ्रातरं विप्र-घातिनम् ।
अब्रवीत् प्रहसन् धीमानगस्त्यो मुनिसत्तमः ॥६३
कुतो निष्क्रमितं शक्तिर्मया जीर्णस्य रक्षसः ।
भ्रातुस्तु मेषरूपस्य गतस्य यमसादनम् ॥६४
अथ तस्य वचः श्रुत्वा भ्रातुर्निधनसंश्रितम् ।
प्रधर्षयितुमारेभे मुनिं क्रोधान्निशचरः ॥६५
सोऽभ्यद्रवत् द्विजेन्द्रं तं मुनिना दीप्ततेजसा ।
चक्षुषानलकल्पेन निर्दग्धो निधनं गत: ॥६६
तस्यायमाश्रमो भ्रातुस्तटाकवन शोभितः ।
विप्रानुकम्पया येन कर्मेदं दुष्करं कृतम् ॥६७
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इल्वल तथा उसके भाई की यह कथा वाल्मीकि रामायण में पाई जाती है ।
श्रीराम तथा लक्ष्मण जब सुतीक्ष्णजी के बताये मार्ग का अनुसरण करते हुए महर्षि अगस्त्य के भाई के आश्रम की ओर जाते हैं तो श्रीराम लक्ष्मण से यह कथा कहते हैं जो इल्वल तथा उसके भाई वातापि नामक दो कामरूप राक्षसों के बारे में है । इल्वल ब्राह्मण का वेश धरकर संस्कृत बोलता हुआ ब्राह्मणों को श्राद्ध के अनुष्ठान के लिए निमंत्रित करता था । वातापि मेषशाक का रूप धारण करता और इल्वल ब्राह्मणों को उस मेषशाक (मेढासिंगी) को पकाकर श्राद्ध में भोजन के लिए प्रदान करता । जब ब्राह्मण भोजन कर चुके होते तब इल्वल आवाज़ देकर भाई को जोर से बुलाते हुए कहता : "वातापि! बाहर आ जाओ !" इस प्रकार उन्होंने सहस्रों ब्राह्मणों को मारकर अपना आहार बनाया ।
तब वातापि ब्राह्मणों का पेट फ़ाड़कर बाहर निकल आता । फ़िर दोनों भाई उन ब्राह्मणों को आहार बना लेते । महर्षि अगस्त्य एक समय जब उन राक्षसों के क्षेत्र से गुज़र रहे थे तो देवताओं ने उनसे इन राक्षसों से उत्पन्न संकट को दूर करने के लिए प्रार्थना की । जब इल्वल संस्कृत बोलता हुआ महर्षि को श्राद्ध का निमंत्रण देने आया तो महर्षि अगस्त्य ने उसे स्वीकार कर लिया । फिर जब इल्वल ने मेषशाकरूपधारी वातापि को काटकर और पकाकर महर्षि को भोजन हेतु दिया तो महर्षि के उस भोजन कर लेने के बाद इल्वल ने जोर से आवाज़ देकर वातापि को बाहर निकलने के लिए बुलाया । तब महर्षि हँसकर बोले : "वातापि तो यमलोक पहुँच चुका है, अब कैसे आएगा?"
तब इल्वल अत्यन्त क्रुद्ध हो उठा और उसने महर्षि अगस्त्य पर आक्रमण करने की चेष्टा की । महर्षि ने अपनी आग्नेय-दृष्टि उस पर डालकर उसे तत्क्षण भस्म कर दिया ।
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क्या यह संयोग ही है कि दो ऐसे भाइयों की कथा और इससे मिलता-जुलता घटना-क्रम जिनमें से एक भाई का नाम इल्वल से मिलता जुलता है, हिब्रू बाइबल में तथा क़ुरान में भी पाई जाती है । हिब्रू बाइबल (जेनेसिस) में उन भाइयों का नाम कैन तथा ऐबल है, जबकि क़ुरान में ’आदम’ के पुत्रों के नाम क़ाबिल तथा हाबिल हैं ।
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वाल्मीकि-रामायण,
अरण्यकाण्डे एकादशः सर्गः
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पश्यन् वनानि चित्राणि पर्वतांश्चाभ्रसंनिधान् ।
सरांसि सरितश्चैव पथि मार्गवशानुगान् ॥४५
सुतीक्ष्णेनोपदिष्टेन गत्वा तेन पथा सुखम् ।
इदं परमसंहृष्टो वाक्यं लक्षमणमब्रवीत ॥४६
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ततः सुतीक्ष्णवचनं यथा सौम्य मया श्रुतम् ।
अगस्त्याश्रमो भ्रातुर्नूनमेष भविष्यति ॥५३
निगृह्य तरसा मृत्युं लोकानां हितकाम्यया ।
यस्य भ्रात्रा कृतेयं दिक्शरण्या पुण्यकर्मणा ॥५४
इहैकदा किल क्रूरो वातापिरपि चेल्वलः ।
भ्रातरौ सहितावास्तां ब्राह्मणघ्नौ महासुरौ ॥५५
धारयन् ब्राह्मणं रूपमिल्वलः संस्कृतं वदन् ।
आमन्त्रयति विप्रान् स श्राद्धमुद्दिश्य निर्घृणः ॥५६
भ्रातरं संस्कृतं कृत्वा ततस्तं मेषरूपिणम् ।
तान् द्विजान् भोजयामास श्राद्धदृष्टेन कर्मणा ॥५७
ततो भुक्तवतां तेषां विप्राणामिल्वलोऽब्रवीत् ।
वातापि निष्क्रमस्वेति स्वरेण महता वदन् ॥५८
ततो भ्रातुर्वचः श्रुत्वा वातापिर्मेषवन्नदन् ।
भित्त्वा भित्त्वा शरीराणि ब्राह्मणानां विनिष्पतत् ॥५९
ब्राह्मणानां सहस्राणि तैरेवं कामरूपिभिः ।
विनाशितानि संहत्य नित्यशः पिशिताशनैः ॥६०
अगस्त्येन तदा देवैः प्रार्थितेन महर्षिणा ।
अनुभूय किल श्राद्धे भक्षितः स महासुरः ॥६१
ततः सम्पन्नमित्युक्त्वा दत्वा हस्तेऽवनेजनम्
भ्रातरं निष्क्रमस्वेति चेल्वलः समभाषत ॥६२
स तदा भाषमाणं तु भ्रातरं विप्र-घातिनम् ।
अब्रवीत् प्रहसन् धीमानगस्त्यो मुनिसत्तमः ॥६३
कुतो निष्क्रमितं शक्तिर्मया जीर्णस्य रक्षसः ।
भ्रातुस्तु मेषरूपस्य गतस्य यमसादनम् ॥६४
अथ तस्य वचः श्रुत्वा भ्रातुर्निधनसंश्रितम् ।
प्रधर्षयितुमारेभे मुनिं क्रोधान्निशचरः ॥६५
सोऽभ्यद्रवत् द्विजेन्द्रं तं मुनिना दीप्ततेजसा ।
चक्षुषानलकल्पेन निर्दग्धो निधनं गत: ॥६६
तस्यायमाश्रमो भ्रातुस्तटाकवन शोभितः ।
विप्रानुकम्पया येन कर्मेदं दुष्करं कृतम् ॥६७
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इल्वल तथा उसके भाई की यह कथा वाल्मीकि रामायण में पाई जाती है ।
श्रीराम तथा लक्ष्मण जब सुतीक्ष्णजी के बताये मार्ग का अनुसरण करते हुए महर्षि अगस्त्य के भाई के आश्रम की ओर जाते हैं तो श्रीराम लक्ष्मण से यह कथा कहते हैं जो इल्वल तथा उसके भाई वातापि नामक दो कामरूप राक्षसों के बारे में है । इल्वल ब्राह्मण का वेश धरकर संस्कृत बोलता हुआ ब्राह्मणों को श्राद्ध के अनुष्ठान के लिए निमंत्रित करता था । वातापि मेषशाक का रूप धारण करता और इल्वल ब्राह्मणों को उस मेषशाक (मेढासिंगी) को पकाकर श्राद्ध में भोजन के लिए प्रदान करता । जब ब्राह्मण भोजन कर चुके होते तब इल्वल आवाज़ देकर भाई को जोर से बुलाते हुए कहता : "वातापि! बाहर आ जाओ !" इस प्रकार उन्होंने सहस्रों ब्राह्मणों को मारकर अपना आहार बनाया ।
तब वातापि ब्राह्मणों का पेट फ़ाड़कर बाहर निकल आता । फ़िर दोनों भाई उन ब्राह्मणों को आहार बना लेते । महर्षि अगस्त्य एक समय जब उन राक्षसों के क्षेत्र से गुज़र रहे थे तो देवताओं ने उनसे इन राक्षसों से उत्पन्न संकट को दूर करने के लिए प्रार्थना की । जब इल्वल संस्कृत बोलता हुआ महर्षि को श्राद्ध का निमंत्रण देने आया तो महर्षि अगस्त्य ने उसे स्वीकार कर लिया । फिर जब इल्वल ने मेषशाकरूपधारी वातापि को काटकर और पकाकर महर्षि को भोजन हेतु दिया तो महर्षि के उस भोजन कर लेने के बाद इल्वल ने जोर से आवाज़ देकर वातापि को बाहर निकलने के लिए बुलाया । तब महर्षि हँसकर बोले : "वातापि तो यमलोक पहुँच चुका है, अब कैसे आएगा?"
तब इल्वल अत्यन्त क्रुद्ध हो उठा और उसने महर्षि अगस्त्य पर आक्रमण करने की चेष्टा की । महर्षि ने अपनी आग्नेय-दृष्टि उस पर डालकर उसे तत्क्षण भस्म कर दिया ।
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क्या यह संयोग ही है कि दो ऐसे भाइयों की कथा और इससे मिलता-जुलता घटना-क्रम जिनमें से एक भाई का नाम इल्वल से मिलता जुलता है, हिब्रू बाइबल में तथा क़ुरान में भी पाई जाती है । हिब्रू बाइबल (जेनेसिस) में उन भाइयों का नाम कैन तथा ऐबल है, जबकि क़ुरान में ’आदम’ के पुत्रों के नाम क़ाबिल तथा हाबिल हैं ।
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