Sunday, 28 April 2019

इल्वल तथा वातापि, Cain and Abel

कैन तथा ऐबल
वाल्मीकि-रामायण,
अरण्यकाण्डे एकादशः सर्गः
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पश्यन् वनानि चित्राणि पर्वतांश्चाभ्रसंनिधान् ।
सरांसि सरितश्चैव पथि मार्गवशानुगान् ॥४५
सुतीक्ष्णेनोपदिष्टेन गत्वा तेन पथा सुखम् ।
इदं परमसंहृष्टो वाक्यं लक्षमणमब्रवीत ॥४६
...
...
ततः  सुतीक्ष्णवचनं यथा सौम्य मया श्रुतम् ।
अगस्त्याश्रमो भ्रातुर्नूनमेष भविष्यति ॥५३
निगृह्य तरसा मृत्युं लोकानां हितकाम्यया ।
यस्य भ्रात्रा कृतेयं दिक्शरण्या पुण्यकर्मणा ॥५४
इहैकदा किल क्रूरो वातापिरपि चेल्वलः ।
भ्रातरौ सहितावास्तां ब्राह्मणघ्नौ महासुरौ ॥५५
धारयन् ब्राह्मणं रूपमिल्वलः संस्कृतं वदन् ।
आमन्त्रयति विप्रान् स श्राद्धमुद्दिश्य निर्घृणः ॥५६
भ्रातरं संस्कृतं कृत्वा ततस्तं मेषरूपिणम् ।
तान् द्विजान् भोजयामास श्राद्धदृष्टेन कर्मणा ॥५७
ततो भुक्तवतां तेषां विप्राणामिल्वलोऽब्रवीत् ।
वातापि निष्क्रमस्वेति स्वरेण महता वदन् ॥५८
ततो भ्रातुर्वचः श्रुत्वा वातापिर्मेषवन्नदन् ।
भित्त्वा भित्त्वा शरीराणि ब्राह्मणानां विनिष्पतत् ॥५९
ब्राह्मणानां सहस्राणि तैरेवं कामरूपिभिः ।
विनाशितानि संहत्य नित्यशः पिशिताशनैः ॥६०
अगस्त्येन तदा देवैः प्रार्थितेन महर्षिणा ।
अनुभूय किल श्राद्धे भक्षितः स महासुरः ॥६१
ततः सम्पन्नमित्युक्त्वा दत्वा हस्तेऽवनेजनम्
भ्रातरं निष्क्रमस्वेति चेल्वलः समभाषत ॥६२
स तदा भाषमाणं तु भ्रातरं विप्र-घातिनम् ।
अब्रवीत् प्रहसन् धीमानगस्त्यो मुनिसत्तमः ॥६३
कुतो निष्क्रमितं शक्तिर्मया जीर्णस्य रक्षसः ।
भ्रातुस्तु मेषरूपस्य गतस्य यमसादनम् ॥६४
अथ तस्य वचः श्रुत्वा भ्रातुर्निधनसंश्रितम् ।
प्रधर्षयितुमारेभे मुनिं क्रोधान्निशचरः ॥६५
सोऽभ्यद्रवत् द्विजेन्द्रं तं मुनिना दीप्ततेजसा ।
चक्षुषानलकल्पेन निर्दग्धो निधनं गत: ॥६६
तस्यायमाश्रमो भ्रातुस्तटाकवन शोभितः ।
विप्रानुकम्पया येन कर्मेदं दुष्करं कृतम् ॥६७
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इल्वल तथा उसके भाई की यह कथा वाल्मीकि रामायण में पाई जाती है ।
श्रीराम तथा लक्ष्मण जब सुतीक्ष्णजी के बताये मार्ग का अनुसरण करते हुए महर्षि अगस्त्य के भाई के आश्रम की ओर जाते हैं तो श्रीराम लक्ष्मण से यह कथा कहते हैं जो इल्वल तथा उसके भाई वातापि नामक दो कामरूप राक्षसों के बारे में है । इल्वल ब्राह्मण का वेश धरकर संस्कृत बोलता हुआ ब्राह्मणों को श्राद्ध के अनुष्ठान के लिए निमंत्रित करता था । वातापि मेषशाक का रूप धारण करता और इल्वल ब्राह्मणों को उस मेषशाक (मेढासिंगी) को पकाकर श्राद्ध में भोजन के लिए प्रदान करता । जब ब्राह्मण भोजन कर चुके होते तब इल्वल आवाज़ देकर भाई को जोर से बुलाते हुए कहता : "वातापि! बाहर आ जाओ !" इस प्रकार उन्होंने सहस्रों ब्राह्मणों को मारकर अपना आहार बनाया ।
तब वातापि ब्राह्मणों का पेट फ़ाड़कर बाहर निकल आता । फ़िर दोनों भाई उन ब्राह्मणों को आहार बना लेते । महर्षि अगस्त्य एक समय जब उन राक्षसों के क्षेत्र से गुज़र रहे थे तो देवताओं ने उनसे इन राक्षसों से उत्पन्न संकट को दूर करने के लिए प्रार्थना की । जब इल्वल संस्कृत बोलता हुआ महर्षि को श्राद्ध का निमंत्रण देने आया तो महर्षि अगस्त्य ने उसे स्वीकार कर लिया । फिर जब इल्वल ने मेषशाकरूपधारी वातापि को काटकर और पकाकर महर्षि को भोजन हेतु दिया तो महर्षि के उस भोजन कर लेने के बाद इल्वल ने जोर से आवाज़ देकर वातापि को बाहर निकलने के लिए बुलाया । तब महर्षि हँसकर बोले : "वातापि तो यमलोक पहुँच चुका है, अब कैसे आएगा?"
तब इल्वल अत्यन्त क्रुद्ध हो उठा और उसने महर्षि अगस्त्य पर आक्रमण करने की चेष्टा की । महर्षि ने अपनी आग्नेय-दृष्टि उस पर डालकर उसे तत्क्षण भस्म कर दिया ।
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क्या यह संयोग ही है कि दो ऐसे भाइयों की कथा और इससे मिलता-जुलता घटना-क्रम जिनमें से एक भाई का नाम इल्वल से मिलता जुलता है, हिब्रू बाइबल में तथा क़ुरान में भी पाई जाती है । हिब्रू बाइबल (जेनेसिस) में उन भाइयों का नाम कैन तथा ऐबल है, जबकि क़ुरान में ’आदम’ के पुत्रों के नाम क़ाबिल तथा हाबिल हैं ।
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Thursday, 25 April 2019

Theocracy-cum-Democracy.

यह पोस्ट 'शिवसेना' और 'भाजपा', तथा उन सभी को समर्पित है जिन्हें भारत से प्रेम है, जो भारतीय हैं !
This post is dedicated to 'Shiv-Sena', 'BJP' and all those who love India and Democracy.
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Wednesday, 24 April 2019

Tuesday, 23 April 2019

Religion 'Personal' and 'Social'

वैयक्तिक, सामूहिक और सामाजिक धर्म 
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विश्व-धर्म, सनातन-धर्म

भृगु-जाबाल धर्म
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यह कथा ऋषि जाबालि की है और भगवान विष्णु के अवतार भगवान परशुराम की भी है।
इसे हिंदी में लिखना अधिक स्वाभाविक लगा कभी संभव हुआ तो अंग्रेज़ी में भी लिखने की कोशिश करूंगा।
भृगु-जाबाल धर्म भी विश्व-धर्म, सनातन-धर्म ही है किन्तु इसका प्रभाव संसार पर जैसा पड़ा वह बहुत महत्वपूर्ण और रोचक भी है।
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Monday, 22 April 2019

गोवंश : आधिभौतिक सत्य

गोकरुणानिधि
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श्री राजीव दीक्षित जी के इस विडिओ को देखकर महर्षि स्वामी दयानन्द सरस्वती विरचित  'गोकरुणानिधि' को 'गूगल-सर्च' किया तो एक अच्छा सा लिंक यह  मिला।
गाय का अर्थशास्त्र केवल भारतवर्ष के लिए ही नहीं पूरे विश्व के लिए अत्यंत कल्याणप्रद, समृद्धि, सुख-शान्ति, स्वास्थ्य और सौहार्द्र का साधन है।
गाय का आधिभौतिक स्वरूप ही इतना शुभ और मंगलकारी है कि उस आधार पर भी गाय के महत्त्व का मूल्यांकन करें तो भी काफी है।
गाय के आधिदैविक और आध्यात्मिक सत्य का मूल्यांकन तो वेदों ने किया ही है।
कम से कम इतना तो समझा ही जा सकता है कि गाय (और दूसरे भी पशु-पक्षियों) का मांस खाना, 'आर्थिक लाभ' के लिए उनकी हत्या करना अंततः हमारे पूरे संसार के लिए आध्यात्मिक दृष्टि से भी बहुत अनिष्टकारी है।
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Friday, 19 April 2019

Further Notes on विरूपाक्ष-पञ्चाशिका

I had written about the विरूपाक्ष-पञ्चाशिका some time ago on this blog in some earlier post(s).
I had no idea that there is a parallel having striking resemblance in the Exodus.
A month ago I however, while searching for Moses and Gabriel, I chanced upon this.
And today only in the morning, a few hours ago while writing about Venn (वेन ) and his son वैन, which finds a mention in ऋग्वेद / Rigveda as well, it suddenly came to my mind that this story that is presented in this link is the same as that of  इन्द्र, indra, विरूपाक्ष, virūpākṣa, वैन, vaina, as is narrated in the विरूपाक्ष-पञ्चाशिका / virūpākṣa-pañcāśikā .
We can easily see How the Column of Light (that the post mentions as 'pillar') was no other than the Lord महादेव / mahādeva / विरूपाक्ष-शिव / virūpākṣa-śiva / Himself, Metatron, the cloud was but the Lord इन्द्र, indra, and वैन, vaina the King who was taught the sacred knowledge.
We can further, of course deduce that this whole thing happened in the presence of  ऋषि जाबाल / जाबालि, / ṛṣi jābāla / jābāli just because a ऋषि / ṛṣi is supposed to be present and available at all times and at all places and could be contacted at once whenever the need is urgent. This again confirmed my conviction that ऋषि जाबाल / जाबालि, / ṛṣi jābāla / jābāli Himself has been described as the Arch-Angel in this narration. While Moses was the Prophet (प्रचेता / प्रपिता), Arch-Angel is but cognate of आर्ष-अङ्गिरस् / अङ्गिरा,  ārṣa-aṅgiras aṅgirā the famous Preceptor as is here :
अथर्वणे यां प्रवदेत ब्रह्माथर्वा तां पुरोवाचाङ्गिरे ब्रह्मविद्याम् ।
स भारद्वाजाय सत्यवहाय प्राह भारद्वाजोऽङ्गिरसे परावराम् ॥
(मुण्डकोपनिषद् १,१,२)
atharvaṇe yāṃ pravadeta brahmātharvā tāṃ purovācāṅgire brahmavidyām |
sa bhāradvājāya satyavahāya prāha bhāradvājo:'ṅgirase parāvarām ||
(muṇḍakopaniṣad 1,1,2)
I am well-convinced about this.
It is though a bit difficult to understand the reference it is very clear for me.
Exodus :  from Sanskrit 'ईषत्-दृशः / īṣat dṛśaḥ', or 'ईषत्-दिष्टः / īṣat-diṣṭaḥ' ,
Which explains how the term 'Exodus' could be derived and both the words give the sens of:
'Given a direction' or 'dictated'.
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Note :
No doubt, 'Arch-Angel' is again cognate of  'आर्ष-अङ्गिरा' / ārṣa-aṅgirā.
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Thursday, 18 April 2019

यथाभिमत ध्यानात् वा

पतञ्जलि के योगसूत्र
सूर्य, सोम, वरुण, ध्यान, धारणा, समाधि, संयम, ज्योति, रस, अमृत 
उषःपान
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Easter and Good Friday!

यह पोस्ट श्री विवेक अग्निहोत्री ('ताशकंद-फाईल्स') को समर्पित है। 
 Dedicated to Sri Vivek Agnihotri (Tashkent-Files).
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Wednesday, 17 April 2019

अहिंसा परमो धर्मः

धर्म और धर्मोन्माद
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कल शाम विवेक ओबेरॉय और रोहित सरदाना के बीच हुई बातचीत का वीडिओ देख रहा था ।
विवेक ओबेरॉय ने कहा :
"आतंकवाद का कोई धर्म नहीं होता ।"
एक पुरानी दलील याद आई :
" ... आतंकवादी जब मारा जाता है तब उसका धर्म पता चल जाता है !"
’ऑउट ऑफ़ द बॉक्स - थिंकिंग’ (OTBOT) से सोचें, तो पूछा जा सकता है :
"क्या धर्म का कोई आतंकवाद हो सकता है?"
और यूँ भी पूछा जा सकता है :
"क्या धर्म कई हो सकते हैं?"
"क्या अधर्म ही कई नहीं होते?"
हमारी ’बॉक्स्ड थिंकिंग’ इसलिए बॉगल्ड-अप (boggled-up) हो जाती है अर्थात् बौखला जाती है, क्योंकि हम अपनी सुविधा के अनुसार कभी तो ’धर्म’ को एक अर्थ में इस्तेमाल करते हैं और कभी दूसरे किसी अर्थ में । और इसलिए आतंकवाद हमारी इस कमज़ोरी का फ़ायदा उठाता है और छल से अपने ’धार्मिक स्वतन्त्रता के अधिकार’ की दुहाई देकर अपने स्वार्थ के अनुसार ’धर्म’ शब्द को अलग-अलग सन्दर्भ में इस्तेमाल करते हुए हमें भ्रमित किए रहता है ।
अगर’अहिंसा परमो धर्मः’ के सिद्धान्त को कसौटी बनाकर ’धर्म’ क्या है, और ’अधर्म’ क्या है, इस प्रश्न पर साथ साथ विचार करें तो इस भ्रम से छुटकारा पाया जा सकता है ।
तब हमें पूछा जा सकता है :
’हिंसा’ क्या है, और ’अहिंसा' क्या है?
स्पष्ट है कि किसी भी प्रकार का आतंक हिंसा ही है चाहे वह आतंक ’धर्म’ या सिद्धान्त (Ideology) के नाम पर ही क्यों न हो ।
और हिंसा का प्रत्युत्तर हिंसा से नहीं दिया जा सकता ।
राजनीतिक-धर्म अर्थात् धर्म की राजनीति इस भ्रम से भ्रमित होती है और उसे लगता है, उसका दृढ़ ’विश्वास’ होता है कि हिंसा से किसी विशिष्ट ध्येय को प्राप्त किया जा सकता है और उसे यह नहीं दिखाई देता कि हर क्रिया की प्रतिक्रिया उसी अनुपात के बल के साथ  होती है । हिंसा से आप तात्कालिक रूप से सफल होते भले ही दिखाई देते हों इससे आपकी समस्या का अन्त नहीं होता, और समस्या के हल होने की तो कल्पना भी नहीं की जा सकती । जिसके साथ हिंसा की जाती है वह भी अपनी प्रतिरक्षा तो करेगा ही । आप हिंसापूर्वक या छल से किसी को ’कन्वर्ट’ करने की चेष्टा करते हैं तो यह आपका एक दुष्ट विचार मात्र है क्योंकि आप अपने गिरेबान में झाँककर स्वयं से यह पूछना तक भूल जाते हैं कि ’कन्वर्ट’ हो जाने से क्या आपको खुद को शान्ति मिली? शक्ति मिली? जब आपको यह बात समझ में आएगी कि शक्ति और शान्ति की कल्पना और विचार एक दुःस्वप्न है तब आपका यह दुःस्वप्न टूट जाएगा । तब अशान्ति भी दूर हो जाएगी । इसे आप शान्ति कहें तो वह तो पहले से ही आपके पास थी ही लेकिन शान्ति की कल्पना और विचार से आपकी बुद्धि इतनी मोहित हो गई कि जो आपके पास अनायास उपलब्ध है वह आपकी दृष्टि से ओझल हो गया ।
राजनीति, शक्ति और शान्ति की तलाश है और यह तलाश ही अशान्ति और बेचैनी है जो अन्ततः आपको नष्ट कर देती है ।
राजनीति वह उन्माद है जो अन्ततः मनुष्य को और उसके संसार को भी नष्ट कर देता है ।
इसलिए ज़रूरत उस राजनीतिक धर्म की नहीं है, -जहाँ धर्म उन्माद होता है ।
ज़रूरत उस धार्मिक राजनीति की है, -जहाँ धर्म अहिंसा है ।
जैसे धर्म अहिंसा और अहिंसा  धर्म है, वैसे ही अधर्म हिंसा और हिंसा अधर्म है।
जब तक कोई 'दूसरा' है तब तक संघर्ष, युद्ध, हिंसा तो होगी ही।
कोई अपने-आप के साथ हिंसा कैसे कर सकता है?
सच तो यह है कि दूसरे पर की जानेवाली हिंसा भी स्वयं पर ही की जानेवाली हिंसा का ऐसा रूप है जिसे हम दुर्भाग्यवश अंत तक पहचान नहीं पाते।
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महावीर-जयन्ती की शुभकामनाएँ !

Dharma, -Ancient and Timeless.

आर्ष-अङ्गिरस  / अनुसंधान , 
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सनातन-आर्य-धर्म  
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Monday, 15 April 2019

एकेश्वरवाद ?

पुरुषोत्तम योग :
क्षर भूत, अक्षर भूत और क्षर-अक्षर से भिन्न परमात्मा
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Sunday, 14 April 2019

Friday, 12 April 2019

तब और आज

महात्मा गाँधी और गाँधीवाद 
पतञ्जलि, राजयोग, क्रियायोग, सार्वभौम व्रत,
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महात्मा गाँधी ने जीवन को जिन प्रेरणाओं से प्रेरित होकर जीने का प्रयास किया उन्हें जानना, और उन्हें तथा उनके जीवन को हमने अपनी बौद्धिक समझ के अनुसार व्याख्यायित कर जिन सिद्धांतों को गाँधीवाद समझा, उनके बीच की दूरी को पाटने के लिए और संक्षेप में "गाँधीवाद क्या है ?" इसे महर्षि पतञ्जलि के योग-सूत्र के माध्यम से इस प्रकार से देखा जा सकता है।
प्रथम अध्याय 'समाधिपाद' में महर्षि पतञ्जलि ने 'चित्त' और 'चित्तवृत्ति' क्या है, तथा समाधि के माध्यम से चित्त किस प्रकार वृत्तिरहित 'स्वरूप' का आविष्कार कर उसकी ओर लौटता है इसे स्पष्ट किया है :
अथ योगानुशासनम्। १
योगश्चित्तवृत्तिनिरोधः। २
द्वितीय अध्याय 'साधनपाद' में 'क्रियायोग' के बारे में कहा गया है अर्थात् जीवन में जिन साधनों का प्रयोग  करने से योग की सिद्धि होती है उनका उल्लेख किया गया है।
[तपःस्वाध्यायेश्वरप्रणिधानानि क्रियायोगः।  १ ]
महात्मा गाँधी ने जीवन को जिन प्रेरणाओं से प्रेरित होकर जीने का प्रयास किया उन्हें संक्षेप में इस दूसरे अध्याय के सूत्र ३० एवं ३१ में कहा गया है :
अहिंसासत्यास्तेयब्रह्मचर्यमापरिग्रहा यमाः । ३०
तथा,
जातिदेशकालसमयानवच्छिन्नाः सार्वभौमा महाव्रतम्। ३१
मुझे पता नहीं कि बापू ने उनके द्वारा आचरण में लाये जानेवाले सिद्धांतों को 'राजयोग' में पढ़ने के बाद अपने लिए तय किया या अनायास अपनी अंतःप्रेरणाओं पर चलते हुए उन्हें इसकी उपलब्धि हुई लेकिन यह अवश्य कहा जा सकता है कि उनका व्यक्तिगत जीवन इन्हीं मूल्यों का विकास था।
अहिंसा (किसी भी प्राणिमात्र को कष्ट, दुःख और भय न पहुँचाना), सत्य (जो नित्य, सनातन, शाश्वत और अविकारी है), अस्तेय (अर्थात् अपने अधिकार से बाहर की वस्तु को बलपूर्वक न प्राप्त करना, चोरी न करना, छल-कपट न करना) ब्रह्मचर्य (नैतिक और नैष्ठिक दृष्टि से संसार को ब्रह्म की तरह सर्वत्र देखना और उच्छृंखल आचरण न करना) अपरिग्रह (जिसकी आवश्यकता न हो, जो अपने लिए वास्तव में अभी या परिणाम में हानिप्रद और अंततः पतन का ही कारण हो, उसे केवल कौतूहल, उत्सुकता, भय या प्रलोभन से ग्रहण  करने से बचना) इन्हें 'यम' [यम् - संस्कृत --(नि )+यम् - नियच्छति -- रोकना] कहा जाता है।
ये ही 'यम', - जाति (जन्म), देश (स्थानविशेष), काल (व्यापक आदि अंत से रहित), समय (आदि अंत वाला) इन सब से अबाधित, अछूते / स्वतंत्र रूप से सदा और सर्वत्र सबके लिए अनुकूल तथा पालनीय 'महाव्रत' / धर्म हैं।
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'यम' --यम् - संस्कृत --(नि )+यम् - नियच्छति -- रोकना -- का ही उल्लेख महर्षि पतञ्जलि ने अगले सूत्र में किया है :
शौचसन्तोष तपःस्वाध्यायेश्वरप्रणिधानानि नियमाः।  ३२
बाह्य और अंतर्मन और हृदय की निर्मलता, तप (श्रम से जी न चुराना), स्वाध्याय (मेरे लिए यह ब्लॉग भी इसका एक उदाहरण हो सकता है। ) ईश्वर-प्रणिधान (ईश्वर या उस दिव्य परम सत्ता के अस्तित्व पर श्रद्धा होना जो सर्वत्र और सब-कुछ है, और उससे द्वैत अथवा अद्वैत की अपनी स्वाभाविक रूचि और भावना के अनुसार अपने संबंध को स्मरण रखना, ऐसी अनन्य भक्ति)
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(जैसा मैंने समझा) महात्मा गाँधी के अनुसार 'सत्य' का स्थान 'ईश्वर' से भी ऊपर है और 'स्वच्छता' (शुद्ध आचार, विचार, कर्म) का स्थान 'ईश्वर' के बाद ।
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इसलिए 'ईश्वर' एक है या अनेक, 'है' या 'नहीं हैँ' इत्यादि विचार का आग्रह करनेवालों तथा दूसरों के लिए भी, - सभी के लिए महात्मा गाँधी की शिक्षाओं को गाँधीवाद कहा जा सकता है।
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'राम' से शायद महात्मा गाँधी यही तात्पर्य ग्रहण करते थे।
श्रीरामनवमी की हार्दिक शुभकामनाएँ !
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Tuesday, 9 April 2019

The Manifesto

मनुस्मृति / manusmṛti
मनुस्कृति / manuskṛti
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In a Democracy Like our India, The days prior to elections usually see coming out of many a  Manifestos of all the major stakeholders. Out of curiosity I tried to discover what might be the word in Sanskrit that 'manifesto' would have become cognate of?
I have often discovered with no difficulty that 'the principle of cognates' is very helpful in finding out easily the root-word (in Sanskrit) of any word in most languages (at least those which I'm conversant with). I have tried this on a big number of words and got interesting results.
Let us think of the word 'manifesto'.
To me this is but cognate (सज्ञात) of the Sanskrit word : मनुप्रस्थः -meaning that began with 'Manu'.
There are other words like 'इन्द्रप्रस्थः' 'अनुप्रस्थः' as well.
What about 'manuscript' ?
I can easily see it is but a cognate  (सज्ञात) of the word  'मनुः कृति' or 'मनुस्कृति' / manuskṛti .
The word 'cognate' itself could be seen verily; -of the word सज्ञाति / सज्ञात .
We can note (नुति) that the meaning of the Sanskrit root-word at once tallies with the meaning intended to convey (अर्थ-साम्य), that lets us convinced even more.
Now let us check the word 'convince'.
For me, this is a direct cognate (सज्ञाति / सज्ञात) of the the Sanskrit root-word 'सं विन्द', which again, when tested upon the criteria of अर्थ-साम्य (resemblance of the meaning) gives precisely the same meaning.
They would tell us this is because the "Proto-Indo-European' family.
The word 'Proto' too is in fact a cognate of the Sanskrit root-word 'प्रथ्' - 'प्रथ्यते' - 'प्रथा' - 'प्रथम' - first प्रस्थ ! Thus we again arrive at how मनुप्रस्थः takes the form 'Manifesto'.
A few days ago some-one (from Pakistan) was trying to explain that 'Hindu-militant' is not a word uttered in a derogatory-sense or in disdain. Perhaps he meant there is a 'योद्धा संन्यासी' -'the warrior monk', so 'Hindu-militant' is likewise acceptable in this way. Some-one (rightly) objected to this logic.
There are 3 such words :
1 धर्मक्षेत्रे कुरुक्षेत्रे समवेता युयुत्सवः ..... .
(dharmakShetre kurukShetre samavetA yuyutsavaH ...)
Thus begins 'GitA' chapter 1, stanza 1.
Here युयुत्सवः is plural of 'युयुत्सु' which means one eager for war.
The Japanese / Brazilian word for a Martial-Art technique is 'Jiu-Jutsu' or Jiju-Jitsu exactly a direct cognate of  Sanskrit word 'yuyutsu' 'युयुत्सु' because the pronunciation indicates thus.
And in comparison, the Arabic / Persian or Urdu word 'ज़िद' -'ज़िद-ओ-ज़द' - conveys quite the same. When we read the story of the King Jahnu -जह्नु / भगीरथ who brought down the Ganges from the Heavens (or the Himalayan-Mountaintop) and The Ganges therefore got the name 'जाह्नवी' we can sure see how the Urdu / Persian word 'जंग / जंगजू' might have come to our dictionary. Jahnu -जह्नु literally unassumingly carried out the great endeavor with the spirit of a warrior.
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So let me explain how 'militant' might have been used in the beginning.
Malaysia is the place which is also known as Melaka. According to वाल्मीकि-रामायण / Ramayana बालकाण्ड सर्ग 55 श्लोक 3 :
योनिदेशाच्च यवनाः शकृद्देशाच्छकाः स्मृताः।
रोमकूपेषु म्लेच्छाश्च हारिताः साकिरातकाः।।
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In the previous sarga / chapter 54 also, it is described in great detail, how most of the human races have been born from the cow कामधेनु / kAmadhenu when वसिष्ठ / Vasishtha gave her permission to destroy the military of विश्वामित्र VishvAmitra.
And till date we have a historical record of those different races in different parts of the globe.
Valmiki Ramayana is no myth but an account of History at the 3 levels of आधिभौतिक, आधिदैविक and the आध्यात्मिक  as well.
So, we find How military  is a cognate of 'म्लेच्छ / mlechchha' . The another word  that is a cognate is : 'milli' which means many / a thousand; and we have millimeter, millennia, to enunciate this. 
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Sunday, 7 April 2019

Saturday, 6 April 2019

Turmeric and Cancer

पुनर्नवा / Cancer  के बारे में लिखी पिछली पोस्ट के संबंध में जो जानकारी मैंने प्रस्तुत की है उसे मैंने श्री राजीव दीक्षित जी के
पुनर्नवा 
इस विडिओ से पाया था।
यदि आप इसे देखेंगे तो अधिक लाभ होगा।
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For details about the post on Cancer, Please click the link given above.
I just couldn't post it there.
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पुनर्नवा / punarnavā .

Astronomy, Ayurveda, Philology.
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नव-संवत्सर

।। विक्रमाब्द २०७६ ।।
युगादि चैत्र शुक्ल प्रतिपदा 6 अप्रैल 2019 
वर्ष के राजा शनिदेव एवं प्रधानमंत्री सूर्यदेव हैं। पूरे वर्ष भर शनिदेव धनुराशि में परिभ्रमण करेंगे। शनिदेव सूर्यपुत्र होने से पिता-पुत्र के संबंध के साथ परस्पर नैसर्गिक वैर होने से पृथ्वी पर धर्म (सूर्य) और धर्मयुक्त-अधर्म (शनि) के बीच टकराहट रहेगी, किन्तु धनु के स्वामी बृहस्पति दोनों के मित्र होने से संसार में अशुभ का ह्रास तथा शुभ की वृद्धि ही होगी । यतो धर्मस्ततो जयः।।  
।।  इति शं ।। 


   

Thursday, 4 April 2019

The Remnants and the Reminiscence.

This seems to be the last part of what I had started as, with 'Customise the Mind' --1.
English is not my mother-tongue, neither I expect that my English could 'Grammar-Perfect'.
I just saw this whole picture of 'Religion' like this, and don't claim if and how much my assertions are correct / true or incorrect / false.
I have no intention whatsoever of hurting the sentiments of anybody.
Better, if you see my views as kind of fiction only. 
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The Beginning and the stream of 'Dharma'.

Christianity and कठोपनिषद् / kaṭhopaniṣat
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I was a bit hesitating while thinking if I should post the next image-files, but this video helped me ultimately in taking the decision. By this I don't endorse the whole Christianity and its doctrines, I'm giving just enough basis how it could be reasoned out in this way. 
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Wednesday, 3 April 2019

काश्मीर वीर शैव सिद्धांत

Lost in Obscurity.
'Beersheba' is a word that reminds me of the 'Veera-Shaiva' - school of thought, that has historical origin and prevalence in Kashmir. This is also known as 'Veera-Shaiva Siddhanta of Kashmir' and I remember I had shared a post about this in my blog.
In my research in Philology / Linguistics, I noticed in Urdu 'sheba' / शब / शबा  means 'night'.
This is no doubt a cognate of 'शाबर' / 'शबर' / 'शर्बरी' / 'शबरी' which is synonymous of 'night'.
'night' itself is a cognate (सज्ञात) of  'निशित' meaning deep and dark even black.
'sheba' may also be seen as the deformation of the Sanskrit / Hindi word 'शिव'.
The practice of worshiping 'शिव' in the 'काश्मीर वीर शैव सिद्धांत' has taken the form of offering respects to 'पीर' which is exactly a form of  'शिव', wandering in the graveyards and cremation-grounds.
If I'm correct there is no letter 'p' in the Arabic! There is 'b' only which has been 'updated' for use at the place of 'p'. Here is an interesting article from NYT.
This means there are chances that 'Beer' which is a cognate of 'वीर' has been transformed into 'Beer' and then written and understood as 'पीर'. This is how शमन-धर्म / śamana-dharma, was prevailing all over the globe before the arrival of the newer religions.
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Monday, 1 April 2019

On Religion and Dharma.

Wrote in image-files something about the Religion and Dharma / धर्म .
How Dharma / धर्म is Awareness, pure attention, -free of fear and greed; -of  'What is', while Religion may accompany fear and greed. Dharma / धर्म is freedom from the fear and the greed and the hope and the counterpart of hope that is despair. Dharma / धर्म may go well with tradition or may find it difficult to stick to tradition. Religion is about the 'other world' and the concepts and beliefs about the life (?) after supposed 'death'.
Religion is about 'a God' or 'many Gods' or perhaps 'no God' at all.
Dharma / धर्म is clarity about 'What is' that is unsullied, immutable through all this visible phenomena and the phenomenal.
Adharma / अधर्म on the other hand is : conflict, doubt or the doubt hidden and latent in the name of 'faith'.
Quite unable to decide if I should post those image-files here.
Though I think this is my blog, don't want to hurt feelings of any reader who occasionally views my blog.
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