मनुस्मृतिः
--
अध्याय 5, श्लोक 55
--
मां सः भक्षयिता अमुत्र
यस्य मांसं इह अद्मि अहम् ।
एतत्-मांसस्य मांसत्वं
प्रवदन्ति मनीषिणः ॥
--
अर्थ :
वह उस परलोक में मुझे खाता है, जिसका मांस मैं इस लोक में खाता हूँ । मनीषी इसे ही मांस का मांसत्व कहते हैं !
--
--
अध्याय 5, श्लोक 55
--
मां सः भक्षयिता अमुत्र
यस्य मांसं इह अद्मि अहम् ।
एतत्-मांसस्य मांसत्वं
प्रवदन्ति मनीषिणः ॥
--
अर्थ :
वह उस परलोक में मुझे खाता है, जिसका मांस मैं इस लोक में खाता हूँ । मनीषी इसे ही मांस का मांसत्व कहते हैं !
--
manusmṛtiḥ
--
Chapter / adhyāya 5,
stanza / śloka 55
--
māṃ saḥ bhakṣayitā amutra
yasya māṃsaṃ iha admi aham |
etat-māṃsasya māṃsatvaṃ
pravadanti manīṣiṇaḥ ||
--
One whose flesh I consume in this world (life), consumes my own in the next world (life).
This is indeed the meaning of māṃsaḥ (flesh).
--
No comments:
Post a Comment