Sunday, 20 September 2015

एक रोचक वाक़या / An interesting incidence :

एक रोचक वाक़या  
An interesting incidence :
आकाशवाणी ने ’ट्वीट्’ किया :
इतिहास हमें अपनी जड़ों से जोड़ता है । इतिहास से अगर नाता छूट जाता है, तो इतिहास बनाने की संभावनाओं को भी पूर्ण विराम लग जाता है ।
एक मित्र ने उसे ’रि-ट्वीट्’ किया जिसके ’रिप्लाय’ में मैंने ’ट्वीट्’ किया :
क्या हमारी कोई सुनिश्चित पहचान है भी? यदि है तो किस रूप में ?
यदि नहीं तो इतिहास विचारमात्र है । और विचार कोरा भ्रम है जिसकी जड़ें ही नहीं होतीं...और विचार का इतिहास भी नहीं होता जिसके बनने-मिटने या नष्ट होने का प्रश्न उठे ।
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एक रोचक वाक़या  
An interesting incidence :
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A.I.R. 'tweeted' : "History connects us with our roots. If we are lost of this relationship, the possibilities of creating a history come to a full-stop." A friend 're-tweeted' this. And I 'replied' : Do we really have a certain well-defined identity? If yes, in what form? If no, history is a only a thought. ...And thought has no history at all, -whatsoever, which could be made, preserved or lost. Thought is like amara-bel, अमरबेल, a parasitic creeper without roots.
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