Thursday, 6 May 2021

चार महावाक्य / सोऽहम्

तत्वमसि, अहं ब्रह्मास्मि ।

अयमात्मा ब्रह्म, प्रज्ञानं ब्रह्म।।

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स्मृति के अंश हैं, 

चलना और मुड़ना, 

रास्ते के संग हैं, 

मिलना-बिछुड़ना, 

जीवन के रंग हैं,

स्मृतियाँ-विस्मृतियाँ,

नित्य और अनित्य, 

अतीत के दंश हैं! 

किसका अतीत या भविष्य!

किसका यह वर्तमान है? 

इसे खोज लेना,

अज्ञान का अंत है, 

अज्ञान वह अनादि, 

जिसका प्रारंभ नहीं है, 

प्रारंभ ही है अंत, 

यह सातत्य नहीं है।

सातत्य है कल्पना, 

यह सत्य नहीं है, 

फिर भी अस्तित्व यह,

पर यह असत्य नहीं है!

जो सत्य है, वह सत्,

जो सत् है, वही चित्, 

जो चित् है, वही प्रेम, 

जो प्रेम है, चित्त नहीं है! 

जो चित्त है, वह चित्र है,

जो चित्र है, वह दृश्य, 

जो दृश्य है, वह दृष्टि,

जो दृष्टि है, वही दर्शन!

जो दर्शन है, वह द्वैत नहीं,

जो द्वैत है, विभाजन है, 

जो विभाजन है, भक्ति नहीं, 

जो भक्ति है, वह भजन है, 

जो भजन है, भोजन है, 

जो भोजन है, वह अन्न है, 

जो अन्न है, परब्रह्म है!

जो परब्रह्म है, वही तुम हो, 

वही मैं, वही सर्व है! 

जो सर्व है, सर्वस्व है ।

जो सर्वस्व है, वह प्रभु है, 

जो प्रभु है, वह विभु है, 

जो विभु है, स्वयंभू है,

भूर्भुवःस्वरोम् नमः!!

तत्सवितुर्, वरेण्यम्,

भर्गो देवस्य धीमहि,

धियो यो नः प्रचोदयात्।।

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