Wednesday, 16 December 2015

सप्त सुरन तीन ग्राम

गंधर्व > गांधार > गांधारी  
* * * * * * सा रे ग म प ध नि सा
* * * * * सा रे ग म प ध नि सा
* * * * सा रे ग म प ध नि सा
* * * सा रे ग म प ध नि सा
* * सा रे ग म प ध नि सा
* सा रे ग म प ध नि सा
सा रे ग म प ध नि सा रे ग म प ध नि सा सा रे ग म प ध नि सा
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सप्त सुरन तीन ग्राम उनचास कोटि प्राण,
गुनिजन सब करत ध्यान नादब्रह्म जागे ॥
सुर अलाप अलंकार मूर्च्छना विविध प्रकार
कल-कल ज्यों जल की धार ठुमक चलत आगे ॥
जीवन को गीत जान साँस साँस जैसे तान,
हर धड़कन लय समान, हर पल प्रभु आगे ॥
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सात सुर (देवता), तीन ग्राम > औडव, षाडव और संपूर्ण,
7 x 7 = 49 कोटि (श्रेणी) के प्राण (कंपन)
मूर्च्छना :
चेतना के सप्त तलों पर / में क्रमशः आरोहण / अवरोहण,
इस प्रकार एक जीव के लिए जो ’सा’ है, वही किसी दूसरे के लिए ’रे’ या अन्य कोई सुर हो सकता है ।
अलाप (आलाप) > स्वर-क्रम विशेष, अलंकार > आभूषण / शैली,
तीन सप्तकों में 7 x 3= 21 प्रकार की मूर्च्छनाएँ होती हैं,
ये सात अधो-लोक, पृथ्वीलोक, और ऊर्ध्वलोक हैं ।
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