Thursday, 23 December 2021

तन्मात्रम् / The Quantum.

सन्मात्रः (चित्सत्)

----------©---------

राहुग्रस्त दिवाकरेन्दुसदृशो माया समाच्छादनात्

सन्मात्रः करणोपसंहरतो योऽभूत्सुषुप्तः पुमान् ।

प्रागस्वाप्समिति प्रबोधसमये यः प्रत्यभिज्ञायते 

तस्मै श्रीगुरुमूर्तये नम इदं श्रीदक्षिणामूर्तये ।।

(श्रीदक्षिणामूर्तिस्तोत्रम्)

--

चेतना का प्रवेश-द्वार 

(The Threshold of the Consciousness.)

--

जिस प्रकार सूर्य तथा चन्द्रमा राहु से ग्रस्त होने पर यद्यपि अपने स्वरूप से भिन्न प्रतीत होते हैं, किन्तु स्वरूपतः वे विकार से युक्त नहीं होते, उसी प्रकार से वह-यह, सन्मात्र पुरुष श्रीदक्षिणामूर्ति भी सुषुप्ति से आवरित होने पर, माया के प्रभाव से आच्छादित हुआ प्रतीत होते हुए भी, अपने चैतन्य-रूप का उपसंहार करने से सुषुप्त सा प्रतीत होता है । 

और जागृत होने पर, 

'मैं सुषुप्त था' 

-- यह कहने से पहले ही, उसे 'मैं जागृत होनेवाला हूँ,' इसका भान होता है, उस श्रीदक्षिणामूर्ति (गुरु-तत्त्व) को नमस्कार!

***

रस (आप, - जल-तत्त्व)

रूप (अग्नि तत्त्व),

स्पर्श (वायु तत्त्व),

श्रवण (आकाश तत्त्व),

और गन्ध (पृथ्वी तत्त्व),

इन पाँच तत्त्वों को ही तन्मात्र (quantesimal) कहा जाता है।  क्योंकि यही पाँचों, ज्ञानेन्द्रियों के इन्द्रिय-संवेदन, और पाँच सूक्ष्म महाभूतों के मध्य सम्पर्क का साधन होते हैं । इसी प्रकार सूक्ष्म चिदंश (चित्-अंश) को ही सन्मात्र (पुरुष) कहा जाता है, जो इस प्रकार से संसार में जागृत, स्वप्न तथा सुषुप्ति आदि दशाओं का उपभोग करता है ।

जब यह इन तीनों दशाओं में एक से मुक्त होकर किसी अन्य में प्रवेश करता है, और उस समय यदि उसे अपने श्री दक्षिणामूर्ति स्वरूप का भान रहता है तो जागृत होने से पूर्व ही उसे यह स्पष्ट हो जाता है कि जागृत, स्वप्न तथा सुषुप्ति इन तीनों ही दशाओं से आवरित होने पर भी वह स्वरूपतः अविकारी चैतन्य-मात्र है ।

--

तुलना करें :

जागृतादि त्रयोन्मुक्तं जागृतादिमयंस्तथा ।

ॐकारैकसुसंवेद्यं यत्पदं तन्नमाम्यहम् ।।

(माण्डूक्य उपनिषद् -- शाङ्करभाष्य भूमिका) 

***



No comments:

Post a Comment