गन्धवती और शिप्रा
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भूमिका :
इस पोस्ट का शीर्षक यद्यपि श्रीरमणगीता के द्वितीय अध्याय के प्रथम श्लोक से प्रेरित होकर लिया गया है, क्योंकि वहाँ 'बाण' का अभिप्राय है अंक ५, और गन्धवती और शिप्रा की इस कथा का मूल भगवान् शिव (महेश्वर) तथा भगवान् श्रीकृष्ण के बीच हुए युद्ध से संबंधित है।
इस कथा को स्कन्द-पुराण के,
आवन्त्यखण्ड-अवन्तीक्षेत्र-माहात्म्य
में पढ़ा जा सकता है।
इस कथा का संबंध बाणासुर से भी है और इसलिए इस पोस्ट के शीर्षक में बाण शब्द की प्रासंगिकता है।
वर्ष 2019 में विधाता के अदृश्य विधान से प्रेरित होकर इन्दौर रोड पर स्थित होटल रुद्राक्ष के समीप इस स्थान पर रहने लगा था। ग्राम डेंढिया की सीमा में, किन्तु बालाजी-एवेन्यू नामक इस बसाहट में रहते हुए दो-तीन या अधिक बार गन्धवती के तट तक जाना हुआ था। इसे ही आजकल खान या गण्डकी के नाम से भी जाना जाता है। रुद्राक्ष होटल के समीप बने पुल के नीचे से जाने पर आगे शिप्रा है। गण्डकी और शिप्रा का संगम बिलकुल वैसा ही है, जैसा वाराणसी (काशी) में राजघाट के समीप वरुणा नदी का और (असी)गंगा का है ।
आज पुनः माता शिप्रा का स्मरण हुआ तो बहुत दिनों से मन में दबी यह उत्कंठा और उत्सुकता फूट पड़ी कि शिप्रा के माहात्म्य के बारे में स्कन्द-पुराण में प्राप्त वर्णन का पठन करूँ।
यह कथा उतनी ही पावन है जितनी कि स्वयं यह नदी अर्थात् माता शिप्रा!
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