समुद्रवसने देवि!
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थोड़ी देर पहले अपने vinaysv ब्लॉग में उपरोक्त 'सैरन्ध्री' शीर्षक से एक पोस्ट लिखा।
द्रौपदी के बारे में सोचते हुए ध्यान आया कि अधर्म के छल से जुए में दुर्योधन से हारने पर महाराज धर्मराज युधिष्ठिर ने इसे अधर्म को दे दिया अर्थात् बेच ही तो दिया था। जिसके मूल्य के रूप में उन्हें 'सत्यवादी' की उपाधि प्राप्त हुई थी।
इससे बहुत पहले भी, भगवान् श्रीराम ने लोकापवाद के भय से इसे अयोध्या से निर्वासित कर दिया था।
क्या मैं इसे किसी स्मारक को समर्पित कर सकता हूँ?
क्योंकि यह कलाकृति अब मेरे लिए पृथ्वी-माता की प्रतिमा की तरह पूज्य हो गई है।
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