Tuesday, 25 April 2017

धर्म और अध्यात्म

धर्म और अध्यात्म
प्रश्न : समाज, राष्ट्र और विश्व के सन्दर्भ में :
धर्म और अध्यात्म में क्या अंतर है? क्या अध्यात्म धर्म का एक महत्वपूर्ण पक्ष है? या क्या, धर्म अध्यात्म का एक महत्वपूर्ण पक्ष है? या,क्या इन दोनों का परस्पर कोई संबंध ही नहीं है? क्या धर्म पूरी तरह से अध्यात्मरहित हो, यह संभव है? क्या अध्यात्म पूरी तरह से धर्मरहित हो यह संभव है?
उत्तर (१) अति संक्षिप्त में : अपने कर्तव्यों का निर्वहण करना धर्म है और परमचेतन को अनुभव करने की ललक आध्यात्मिकता है । जो आध्यात्मिक होता है वो धार्मिक भी होता है और जो धार्मिक होता है वह धीरे-धीरे आध्यात्मिक बन जाता है ।
प्रश्न : आप तो धर्म को परिभाषित करने लगे ! क्या भिन्न-भिन्न धर्मों के अनुयायी भी ऐसा ही सोचते हैं ?
उत्तर (१) : भिन्न-भिन्न धर्मों से आपका क्या तात्पर्य है?
उत्तर (२) : वह, जिसका रुझान अध्यात्म की ओर होता है, ज़रूरी नहीं कि धार्मिक हो ही, ... यहाँ धर्म से मेरा मतलब है कर्म-काण्ड और रीति-रिवाज । धीरे-धीरे कैसे कोई आध्यात्मिक बन सकता है ... यह तो अपने भीतर से ही आता है । (अध्यात्म और धर्म) दोनों यद्यपि परस्पर सामञ्जस्य में कार्य करते हैं किंतु आवश्यक नहीं कि वे परस्पर निर्भर भी हों ही, इसे ’वेन-डायाग्राम’ की सहायता से समझा जा सकता है ।
उत्तर : वेन डायाग्राम - (इमेज संलग्न है ।)
उत्तर (१) : धर्म के अनुवाद के लिए ’रिलिजन’ शब्द का प्रयोग करने से असहमत हूँ । इसके लिए ’राइटियसनेस’ या ऐसा ही कोई दूसरा शब्द अधिक उपयुक्त होगा । और उसके लिए मेरा उत्तर यही होगा कि यदि आपके प्रश्न में ’धर्म’ का तात्पर्य उपासना-पद्धति  और अध्यात्मिकता का तात्पर्य स्पिरिच्युअलिटी है, तो मैं कहना चाहूँगा कि आध्यात्मिक रुचि रखनेवाला कोई किसी उपासना-पद्धति का आग्रह नहीं करेगा, जबकि किसी विशिष्ट उपासना-पद्धति का पालन / आग्रह करनेवाला व्यक्ति आध्यात्मिक हो ही, यह आवश्यक नहीं ।
रिलीजियस होने का मतलब है किसी विशिष्ट ’विश्वास’ / मान्यता का पालन / आग्रह, जबकि आध्यात्मिक होने का मतलब है सत्य क्या है इसकी खोज में रुचि और प्रयास । ... और धार्मिक होने का मतलब है कर्तव्यपरायण होना । (आंग्लभाषा के प्रयोग में अगर मेरी त्रुटि हो तो क्षमा करें )
उत्तर : आपकी आंग्लभाषा में कोई त्रुटि नहीं है, मेरी आंग्लभाषा भी ऐसी ही है । आपने जो कहा :
"आध्यात्मिक रुचि रखनेवाला कोई किसी उपासना-पद्धति का आग्रह नहीं करेगा, जबकि किसी विशिष्ट उपासना-पद्धति का पालन / आग्रह करनेवाला व्यक्ति आध्यात्मिक हो ही, यह आवश्यक नहीं ।"
पूर्णतः सत्य है । और इससे ’रिलीजन’ के अर्थ में ’धर्म’ और अध्यात्म (स्पिरिच्युअलिटी) का भेद पूरी तरह स्पष्ट हो जाता है । साधुवाद !
--

No comments:

Post a Comment