नई वेताल कथा :
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विक्रम ने हठ नहीं छोड़ा। महाकाल वन में स्थित महाश्मशान में अँधेरे से अभ्यस्त आँखों से दूरस्थ लक्ष्य पर दृष्टि गड़ाये वह उस निविड अन्धकारयुक्त पथ पर बढ़ता ही चला गया, जहाँ वेताल वृक्ष पर झूल रहा था।
विक्रम ने उसे वृक्ष से उतारा और कंधे पर लादकर अपने गुरु के आश्रम की ओर चल पड़ा। जिसे कहते हैं कि कहानी में ट्विस्ट है, वह यह समय था।
इससे पहले तक विक्रम श्मशान में स्थित किसी शव को उठाकर ले जाता था, किन्तु अब उस वेताल के साथ इतने दीर्घकाल तक रहने से वह सीधे ही वृक्ष तक जाने लगा था। वेताल भी विशिष्ट था। विक्रम जानता था कि यह ब्रह्मराक्षस है दूसरा साधारण सा कोई दूसरा वेताल नहीं है।
"राजन्! अब कथा-क्रम तो भंग हो चुका है। अब न तो मैं तुम्हें कथा सुनाऊँगा न तुमसे प्रश्न पूछूँगा ताकि तुम्हारा मौन भंग हो और मैं तुम्हारी पकड़ से छूटकर पुनः अपने लोक में लौट सकूँ! फिर भी मैं तुम्हें एक नई कथा अवश्य सुनाऊँगा, ताकि तुम्हारा मन लगा रहे।
तुम्हें तो पता ही है कि हम तिर्यक् योनि को प्राप्त प्रेत जीव न तो इधर के रह जाते हैं, न उधर के। और इसीलिए तुम्हारा मेरा साथ एक विचित्र समय होता है। तुम जिस समय में रहते हो वहाँ पर समय तुम्हें किसी भूतकाल से किसी भविष्य की ओर, एकांगी मार्ग पर जाता हुआ प्रतीत होता है। इसके ठीक विपरीत हममें से कुछ देवता, गन्धर्व, यक्ष, नाग, और किन्नरों आदि को समय उस एकांगी मार्ग पर जाता हुआ प्रतीत होता है जो तुम्हारे समय के मार्ग की ठीक विपरीत दिशा में जाता है। इसलिए समय की दिशा हम तीनों की स्थिति में अलग अलग होती है। मेरी स्थिति और भी विचित्र है। प्रकाश-तरंगों (light-rays) के व्यतिकरण (interference of optical waves) के कारण जैसे तेजी से घूमते हुए बिजली से चलनेवाले पंखे पर बिजली की रौशनी पड़ती है तो वह कभी पीछे की ओर जाकर पल भर रुका हुआ सा जान पड़ता है और फिर आगे की दिशा में जाता हुआ, वैसी ही संतुलन की उस अवस्था में हूँ मैं, जहाँ समय कभी तो आगे की ओर जाता हुआ दिखाई देता है और कभी पीछे की ओर। इसलिए तुम्हारे अतीत को मैं अपने भविष्य की तरह, तुम्हारे भविष्य को अपने अतीत की तरह देख सकता हूँ! तुम अवश्य ही एक नए संवत्सर की स्थापना करने जा रहे हो, जिसे तुम्हारे नाम से जोड़कर विक्रम संवत् का नाम प्राप्त होगा। तुम्हारे इस विक्रम संवत् के ठीक दो हजार वर्ष पूरे होते ही इस तुम्हारे ही आर्यावर्त में, जिसे पुनः भारतवर्ष भी कहा जाएगा, और जहाँ की राजधानी हस्तिनापुर और कुरुक्षेत्र के बीच होगी, एक और नया संवत्सर तत्कालीन शक शासकों के द्वारा प्रचालित किया जाएगा। इस आर्यावर्त का एक और पुराना-नया नाम इन्दुस्थान या इससे मिलता-जुलता ही कुछ होगा। पुनः तब एक बार उस संवत्सर का नाम परिवर्तित कर तुम्हारे नाम से जोड़कर विक्रम संवत् को ही यहाँ का राष्ट्रीय संवत् घोषित कर दिया जाएगा।
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(कल्पित)
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