Friday, 30 June 2023

Dharma Universal

The Five Universal Principles 

Of Dharma 

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महर्षि पतञ्जलि का योगदर्शन

पाँच सार्वभौम महाव्रत

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The Lifestyle Of A Yogi. 


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Tuesday, 27 June 2023

डायरी या ब्लॉग?

डायरी या ब्लॉग?

क्षण या अवधि, पहचान या स्मृति? 

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अचानक अपने ब्लॉग अतीत पर दृष्टि जाती है, तो खयाल आया इससे बहुत पहले मैं डायरी लिखा करता था। डायरी में लिखा कुछ सुधारना संभव नहीं होता, जबकि ब्लॉग में लिखे पोस्ट को डिलीट किया जा सकता है। डायरी में भी मैं ऐसा कुछ लिखता ही नहीं था जिसे बाद में सुधारना पड़ता। तमाम डायरियाँ अब कहाँ हैं, न तो ठीक से कुछ पता न याद है। 

अतीत स्मृति की पहचान है और स्मृति अतीत की। और दोनों ही अन्योन्याश्रित वृत्ति हैं, इसलिए न तो डायरी का और न ही ब्लॉग में लिखे गए पोस्ट का कोई महत्व है। तात्कालिक दृष्टि से उपयोग हो सकता है। उपयोग भी सिर्फ यही कि समय काटने का यह एक साधन है। समय क्या है? समय वृत्ति है और क्षण या अवधि होता है। दोनों ही पानी पर उठी लहर की तरह शीघ्र ही विलीन हो जाते हैं। तब इससे फर्क नहीं पड़ता कि कौन सी अवधि कितनी छोटी या बड़ी थी।

एक पुराना पोस्ट देखते हुए ऐसा ही लग रहा था। 

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Monday, 26 June 2023

The Self Enquiry

And the Self Realization Through it. 

Self-care.

My WordPress Blog. 

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विश्वास और प्रतीक

धारणाविचार और विश्वास 

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जड insentient और चेतन sentient, दोनों समष्टि प्रकृति के प्रकार हैं।

अस्तित्व Existence और चेतना consciousness / sentience एक दूसरे से अभिन्न हैं, इसे सिद्ध करने के लिए भी किसी विशेष तर्क की आवश्यकता नहीं है, क्योंकि अस्तित्व Existence तो एक स्वयंसिद्ध और स्वप्रमाणित तथ्य है, जिसका बोध निरपवादतः हर चेतन प्राणी को अनायास ही होता है। यह चेतन / sentient कौन / क्या है? वह, जिसमें कि किसी न किसी प्रकार का भान / awareness विद्यमान होता है। उसी बोध / awareness के आधार पर वह स्वयं से भिन्न किसी भी वस्तु को जड और चेतन की तरह वर्गीकृत करता है। यह वर्गीकरण विचार thought पर ही अवलंबित होता है जबकि विचार स्वयं भी चेतन sentience की तुलना में जड insentient ही होता है। विचार एक दृष्टि से तो प्रवाह है, और दूसरी दृष्टि से अनुमान। किसी चेतन में ही यह बोध हो सकता है कि विचार प्रवाह के ही साथ साथ अनुमान भी है। फिर विचार भी, केवल एक ही शब्द या कुछ शब्दों का समूह भी होता है। यह विवेचना भी केवल मनुष्य के सन्दर्भ में ही की जा रही है। क्योंकि मनुष्य के पास उसकी भाषा होती है, जिसमें शब्दों का कोई अर्थ तय होता है। संज्ञा की परिभाषा के अनुसार यह शब्द किसी वस्तु, व्यक्ति या स्थान आदि का नाम होता है, जो कि पुनः वस्तुवाचक अर्थात् (इन्द्रियगम्य) / sensory या भाववाचक / abstract हो सकता है। इसीलिए दो या  अधिक मनुष्यों के बीच भाषा अर्थ के संप्रेषण का माध्यम है। स्पष्ट है कि इस प्रकार से किसी अभीप्सित अर्थ का ऐसे संप्रेषण को ही उनके बीच होनेवाला संवाद कहा जाता है। तात्पर्य यह है कि ऐसा संवाद, किन्हीं जड वस्तुओं के बीच नहीं, किन्हीं दो या दो से अधिक मनुष्यों या चेतनाओं के बीच ही संभव होता है।

अपनी अपनी भाषा -चेतना (ethnicity) के आधार पर विभिन्न समूह अपने विशिष्ट विचार पर आधारित अपनी अपनी पृथक् पृथक् विभिन्न मान्यताएँ और विश्वास निर्मित कर लेते हैं, जिन्हें परंपरा / tradition  कहा जाता है। ऐसे किसी ईश्वर के होने या न होने, या एक अथवा अनेक होने का विचार भी मूलतः एक विचार ही तो होता है, कोई इन्द्रियगम्य या वस्तुपरक तथ्य (a fact experienced through senses, or a sensory perception, indirectly inferred objective truth) नहीं होता।

भाषा के संबंध में तैत्तिरीय उपनिषद् की शीक्षा वल्ली में वर्णाः मात्राः के उल्लेख से शिक्षा के आधार को वर्ण एवं मात्रा के रूप में व्यक्त किया गया है। वर्ण का अर्थ स्वर / स्वन / sound है, जबकि मात्रा / quantity का अर्थ है विस्तार / span जो पुनः व्यापकता के रूप में स्थान / Space और काल / समय / Time दोनों का ही द्योतक है। यह उल्लेख इसलिए भी रोचक (interesting) है, क्योंकि उपनिषद् के इस मंत्र से द्रव्य / matter, स्थान / Space और काल / समय / Time तीनों के पारस्परिक परिवर्तन (mutual transformation) को समझा जा सकता है। जैसे स्थान, किसी नियत स्थल / exact location पर केंद्र और सर्वत्र every-where इन दो रूपों में ग्राह्य हो सकता है, वैसे ही काल / समय को भी एक बिन्दु की तरह एक क्षण-विशेष / moment की तरह या समय-अन्तराल (time-interval) की तरह से भी ग्रहण किया जा सकता है। उक्त मंत्र में अस्तित्व / भौतिक जगत (Physical objective world के तीन आयामों लंबाई L / मात्रा M / काल T को परस्पर कैसे रूपान्तरित किया जा सकता है, यह निष्कर्ष प्राप्त होता है। भौतिक विज्ञान की यही मर्यादा / limitation है। भौतिक विज्ञान विचार आधारित आकलन है जिसका उल्लेख पातञ्जल योगसूत्र के समाधिपाद में :

प्रमाणविपर्ययविकल्पनिद्रास्मृतयः।।६।।

प्रत्यक्षानुमानागमाः प्रमाणानि।।७।।

विपर्ययो मिथ्याज्ञानमतद्रूपप्रतिष्ठम्।।८।।

शब्दज्ञानानुपाती वस्तुशून्यो विकल्पः।।९।।

अभाव-प्रत्यययालम्बना वृत्तिः निद्रा।।१०।।

उपरोक्त सूत्रों के माध्यम से किया गया है।

विश्वास मूलतः कोई विचार ही होता है। जब तक चेतना में विचार और विचारकर्ता का (वैचारिक और आभासी) विभाजन है, तब तक भिन्न भिन्न समुदाय अपने अपने विश्वासों का आग्रह करते रहेंगे। इसलिए विचार से ऊपर उठने पर ही "जो नित्य सनातन और सदा, सर्वथा और सर्वत्र" है उसका परिचय हो पाना संभव है।

शाब्दिक विचार किसी भी रूप में हो, उसे व्यावहारिक स्तर पर ठोस आधार देने के लिए कोई प्रतीक चुन लिए जाते हैं और कोई वैचारिक अवधारणा की बुनियाद पर उन्हें स्थापित कर दिया जाता है। तब वह विचार मानों अमर हो उठता है। तब बुद्धि विचार से विचार में घूमती रहती है और यह भ्रम हो जाता है कि यह सब सनातन काल से चला आ रहा सत्य है। 

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Wednesday, 21 June 2023

The forgotten Links to इल आख्यानः / ila ākhyānaḥ

वाल्मीकि रामायण उत्तरकाण्ड सर्ग ८७
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According to 'Valmiki Ramayana', Venus (Virgin) was daughter of Bhrugu Rishi,

https://swaadhyaaya.blogspot.in/2016/11/ila-akhyanah.html/ ...
The moon was son of Budha (Mercury) and Ila (ilā), ilā was feminine form of King ila (इल् / male form) ... This Bhrugu Rishi is शुक्र > śukra > शुक्र > priya (Fri in 'Friday') meaning Romantic Love. And at the same Time The Teacher of  दैत्य / daitya, demons, where-as Jupiter (Brihaspati) is the Teacher of (देवता) / The Divine Conscious entities. This whole story is so beautifully narrated in वाल्मीकि रामायण / Valmiki-Ramayana.....
This 'ila' came to be known as देव इल / 'deva-ila', मनु इल, manu-ila, अव मनु इल / ava-manu-ila, asmila and अब्रह्मन् / a-brahman ... There is much more to it. So we have Emmanuel / Aman-ul, (अहं) अस्मि इल / Ismail, अब्राह्म / अब्राह्म /  Abraham / Ibrahim, ..!
From (अहं) अस्मि इल  / was the son of  ब्रह्मन / Brahman .
Homer wrote about इल / Il alias Ilyasa / Iliad on the basis of the story of Il, but somehow altogether entirely drifted away from the context and that is why he created another classic in Greek.
Still the story of नचिकेता / Nachiketa described in the मुण्डकोपनिषद् / MundakopniShad bearse vidence and relevance with the theme, how 
उशन् ह वाजश्रवा 
gave away / sacrificed his son to यम / Yama The Lord of Death.
The rest of this story as an analogy could be found subsequently narrated in the different religious texts, need not be mentioned here.

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Wednesday, 14 June 2023

Time Travels

P O E T R Y

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A Voyage In Time.

Time Is Past, Present And Future,

Mind Is Past, Present And Future.

Though The Past Is But The Memory,

And The Future Is But Imagination,

The Two Are Different Altogether.

Yet There Is Also, Now -The Present,

Ever So New, In Time, A Movement.

Mode Of The Mind Is, 

Neither The Memory,

Nor The Imagination,

The Two Reach Nor Touch The Present, 

While The Two Keep On Reverberating,

Ceaselessly In This Moment Present.

The Moment Present Is Though Still,

Is The Only Support For The Two.

Neither The Past, Nor The Future,

Could Ever Assume Existence,

Of This Moment's  Now's Absence. 

While The Present Reigns Supreme,

Over The Past And The Future.

The Two, Overlapping The Present,

Keep The Mind Occupied, Indulging,

In The Memory And The Imagination.

The Truth Lives On,

In Oblivion.

The Reality,  That Is The Very Moment.

A Fictitious Life, The Individual,

Who Becomes Thus This I,

Our Existence, So Superficial.

In Relation To This Very I And Me,  

A Life Personal Is Thought To Be!

This Is The Conflict The Ignorance,

 This Is The Sum Of All Non-Sense.

The Mother of All The Conflict,

The Hope And The Despair,

The Fear And The Desire,

The Doubt And The Agony,

The Anxiety And The Worry.

Ignoring The Imagination,

And Ignoring All Thought,

Discarding, The Future,

And Disowning The Past,

Staying, In This Very Moment,

Devoid Of All Imagination, Thought,

Getting Free From Future And Past,

Staying Happy, Cool And Content, 

Now, In This Very, Present Moment.

There Is No Other Way What-so-ever,

No Path Any In The Past And Future,

This Present Moment Is The Same, 

That is Verily The Pathless Land.

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