मुनित्रय-प्रामाण्यम्
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ऋषिराज पोपट नामक पी. एच. डी. संस्कृत के रिसर्च स्कॉलर हैं, जिन्होंने पाणिनी के अष्टाध्यायी के सूत्र :
८/२/१ -- पूर्वत्रासिद्धम्
का नया तात्पर्य खोजा है।
अभी तक यह माना जाता था कि इस सूत्र के अनुसार मुनित्रय अर्थात् पाणिनी, कात्यायन और पतञ्जलि के द्वारा प्रतिपादित नियमों में से किसके नियम को ग्रहण किया जाना उचित होगा, यह संदेह उठने पर बाद में हुए मुनि के द्वारा प्रतिपादित नियम को ही ग्रहण किया जाए, अर्थात् पहले हुए मुनि के नियम को बाद में हुए मुनि के संबंध में असिद्ध मानना चाहिए।
किन्तु ऋषिराज पोपट की खोज के अनुसार इस सूत्र का तात्पर्य यह है कि जब किसी समास शब्द की व्युत्पत्ति करते समय दो भिन्न नियमों में से किसी एक को चुनने का प्रश्न हो, तो पाणिनी के द्वारा रचित अष्टाध्यायी के उपरोक्त सूत्र ८/२/१ का अर्थ यह ग्रहण करना उचित होगा कि पूर्वत्र -- पहले के शब्द से संबंधित नियम को, बाद के शब्द से संबंधित नियम के प्रति असिद्ध माना जाए।
[अस्वीकृति / Disclaimer :
पता नहीं यह कहाँ तक ठीक है!
केवल अपने रेकॉर्ड के लिए यहाँ नोट और पोस्ट कर रहा हूँ!]
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