द्वौ इमौ / द्वे इमे ...
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ज्या / ज्यां > ज़मीन,
ज्या धनुष / वृत्त का चाप (टुकड़ा) होता है,
ज्यामिति > ज्यां इति वा ज्या-मिति...
मृति > स्मृति, पृश > स्पृश,
मृत / मृति > स्मृति...
मृत , मृदा, मर्त्य, मर्द,..
आत्म > आदम / पुरुष,
ह उ आ > हौवा (प्रकृति),
उ आ > अव > ईव > ऎवा > हौवा...
गीता
पुरुष :
द्वाविमौ पुरुषौ लोके क्षरश्चाक्षर एव च ।
क्षरः सर्वाणि भूतानि, कूटस्थोऽक्षरोच्यते ॥
(गीता अध्याय १५, श्लोक १६)
उत्तमः पुरुषस्त्वन्यः परमात्मेत्युदाहृतः ।
यो लोकत्रयमाविश्य बिभर्त्यव्यय ईश्वरः ॥
(गीता अध्याय १५, श्लोक १७)
यस्मात्क्षरमतीतोऽहमक्षरादपि चोत्तमः।
अतोऽस्मि लोके वेदे च प्रथितो पुरुषोत्तमः ॥
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भूमिरापोऽनिलोवायुः खं मनो बुद्धिरेव च ।
अहङ्कारैतीयं मे भिन्ना प्रकृतिरष्टधा ॥
(गीता अध्याय ७, श्लोक ४)
अपरेमयस्त्वन्यां प्रकृतिं विद्धि मे परां ।
जीवभूतां महाबाहो ययेदं धार्यते जगत् ॥
(गीता अध्याय ७, श्लोक ५)
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इस प्रकार पुरुष नामक सत्ता दो रूपों में जीव तथा ईश्वर के रूप में है,
तथा प्रकृति भी व्यक्त (अपरा) तथा परा (अव्यक्त) इन दो रूपों में है ।
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ज्या / ज्यां > ज़मीन,
ज्या धनुष / वृत्त का चाप (टुकड़ा) होता है,
ज्यामिति > ज्यां इति वा ज्या-मिति...
मृति > स्मृति, पृश > स्पृश,
मृत / मृति > स्मृति...
मृत , मृदा, मर्त्य, मर्द,..
आत्म > आदम / पुरुष,
ह उ आ > हौवा (प्रकृति),
उ आ > अव > ईव > ऎवा > हौवा...
गीता
पुरुष :
द्वाविमौ पुरुषौ लोके क्षरश्चाक्षर एव च ।
क्षरः सर्वाणि भूतानि, कूटस्थोऽक्षरोच्यते ॥
(गीता अध्याय १५, श्लोक १६)
उत्तमः पुरुषस्त्वन्यः परमात्मेत्युदाहृतः ।
यो लोकत्रयमाविश्य बिभर्त्यव्यय ईश्वरः ॥
(गीता अध्याय १५, श्लोक १७)
यस्मात्क्षरमतीतोऽहमक्षरादपि चोत्तमः।
अतोऽस्मि लोके वेदे च प्रथितो पुरुषोत्तमः ॥
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भूमिरापोऽनिलोवायुः खं मनो बुद्धिरेव च ।
अहङ्कारैतीयं मे भिन्ना प्रकृतिरष्टधा ॥
(गीता अध्याय ७, श्लोक ४)
अपरेमयस्त्वन्यां प्रकृतिं विद्धि मे परां ।
जीवभूतां महाबाहो ययेदं धार्यते जगत् ॥
(गीता अध्याय ७, श्लोक ५)
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इस प्रकार पुरुष नामक सत्ता दो रूपों में जीव तथा ईश्वर के रूप में है,
तथा प्रकृति भी व्यक्त (अपरा) तथा परा (अव्यक्त) इन दो रूपों में है ।
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