Thursday, 15 December 2016

विवेकचूडामणि / vivekacūḍāmaṇi -380

विवेकचूडामणि / vivekacūḍāmaṇi -380
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एष स्वयंज्योतिरशेषसाक्षी
विज्ञानकोशो विलसति अजस्रम् ।
लक्ष्यं विधायैनमसद्विलक्षण-
मखण्डवृत्त्याऽऽत्मतयाऽनुभावय ॥
(विवेकचूडामणि ३८०)
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अर्थ :
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मनुष्य के हृदय में स्वयंज्योति-अशेषसाक्षी, विज्ञानमय अजस्र कोश (बुद्धि) में नित्य विलासरत है । इसे असत् से विलक्षण लक्ष्य (सत्) पर स्थिर करते हुए इस अखण्डित (सतत) वृत्ति के माध्यम से, उस लक्ष्य (सत्) को अपनी आत्मा के रूप में जानो ।
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eṣa svayaṃjyotiraśeṣasākṣī
vijñānakośo vilasati ajasram |
lakṣyaṃ vidhāyainamasadvilakṣaṇa-
makhaṇḍavṛttyā:':'tmatayā:'nubhāvaya ||
(vivekacūḍāmaṇi, 380)
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Meaning :
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In the very heart of man, shines eternally the  आत्मन् / ātman, the Self-effulgent Witness of everything, which has the बुद्धि / buddhi,for Its seat. Making this आत्मन् / ātman  which is distinct from the unreal,meditate on It as thy own Self, excluding all other thought.
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