ज्योतिष् :
भौतिक, वैदिक, पौराणिक और आध्यात्मिक दृष्टि
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केवल स्मृति के आधार पर जैसा प्रतीत होता है, बुध ग्रह, सूर्य के सबसे निकट रहता हुआ उसकी परिक्रमा करता है। दूसरी दृष्टि से, बुध चन्द्रमा और बृहस्पति की पत्नी तारा की संतान है। बुध, बुद्धि का अधिष्ठाता देवता है, चन्द्रमा पृथ्वी की परिक्रमा करता है और बृहस्पति की पत्नी तारा बृहस्पति का वह चन्द्रमा है जो कि बृहस्पति की परिक्रमा करता है। इन दोनों चन्द्रमाओं के टकराने से जो आकाशीय पिण्ड उत्पन्न हुआ संभवतः वही सूर्य का यह सबसे समीप स्थित ग्रह, बुध है।
आध्यात्मिक दृष्टि से देखें तो सूर्य आत्मा का ही प्रकट रूप और पर्याय है। चन्द्रमा मन का ही प्रकट रूप और पर्याय है।
पुरुष-सूक्त के अनुसार भी :
चन्द्रमा मनसो जातः।।
यहाँ 'मनसो' अर्थात् मनसः 'मनस्' प्रातिपदिक की पञ्चमी और षष्ठी विभक्ति का एकवचन है । दो भिन्न प्रकारों से दो भिन्न अर्थ हुए : चन्द्रमा मन से उत्पन्न हुआ, और चन्द्रमा मन की उत्पत्ति है। इसका गूढ अर्थ यह है कि मन जो कि बुद्धि, चित्त, अहंकार का पर्याय है और तात्त्विक दृष्टि से चेतना अर्थात् जल / आप भी है जल से अर्थात् चन्द्रमा से उत्पन्न हुआ है। चेतना जल की ही तरह निराकार व्यापक तत्त्व है इसलिए उस पर किसी व्यक्ति का स्वामित्व नहीं हो सकता। दूसरी ओर बुद्धि का जन्म 'बोध' से अर्थात् चेतना से ही होता है। बुद्धि, ज्ञानेन्द्रियों का स्वभाव है। बुद्धि का अधिष्ठाता देवता गणेश है। गणेश का जन्म पहले तो जगज्जननी पार्वती के द्वारा मिट्टी की बालक की प्रतिमा के रूप में किया गया और फिर परमात्मा परमात्म शिव ने उस बालक के मस्तक को धड़ से काटकर अलग कर दिया। मस्तक के न रहने से बालक की मृत्यु हुई या नहीं यह नहीं कहा जा सकता क्योंकि बालक का निर्माण पृथ्वी तत्व और प्राण तत्व के संयोग से हुआ था। अर्थात् वह इन्द्रायित / android , animated tool था, जिसमें अपना मन, अहंकार, चित्त, बुद्धि या चेतना विद्यमान नहीं थी। शिव ने तब गजान्तक रूप में एक हथिनी के उस शिशु का सिर काटकर उसे उस बालक के शिरविहीन धड़ पर स्थापित कर दिया। रोचक तथ्य यह भी है कि हथिनी और उसके शिशु के मुख तब परस्पर विपरीत दिशाओं की ओर थे। विशालकाय होने से पशुओं में हाथी का वही स्थान है, जो ग्रहों में बृहस्पति का है। इस प्रकार कथा की व्याख्या और विवेचना अनेक परिप्रेक्ष्यो, सन्दर्भों और प्रसंगों में की जा सकती है। एक ओर इसे ग्रह-ज्योतिष् अर्थात् स्थूल ज्योतिष, तो दूसरी ओर इसे देवताओं अर्थात् आधिदैविक स्तर पर होनेवाली घटना की तरह भी देखा जा सकता है।
संकष्टी और विनायक चतुर्थी के संदर्भ में एक पौराणिक कथा के रूप में देखें तो चतुर्थी का अर्थ है चौथी या तुरीया। चन्द्र का गुरु की पत्नी से संपर्क उसके लिए अत्यन्त कष्ट (संकटपूर्ण या कष्टप्रद सिद्ध हुआ और फिर उस कष्ट से मुक्ति होने के अनन्तर दूसरे पक्ष में बुद्धि को विनायक की उपाधि प्राप्त हुई।
चन्द्रयान-1, -2, -3 इसी कथा का Demonstration / दृष्ट उदाहरण हो सकता है। चेतन (मन) तक तो चन्द्रयान सरलता से गतिशील रहा किन्तु अवचेतन (मन) में प्रवेश करना उसके लिए एक कठिन कार्य सिद्ध हो रहा है।
चंद्रयान मनुष्य की स्थूल आधिभौतिक, सूक्ष्म आधिदैविक और कारण आध्यात्मिक गहराइयों को जानने की उत्कंठा की एक प्रतीक कथा भी है।
भारत के चन्द्रयान अभियान की सफलता के लिए प्रार्थना और शुभकामनाएँ !
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