अदिति, दिति और कश्यप
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वाल्मीकि रामायण और पुराणों में वर्णित की गई कथा के अनुसार अदिति और दिति दोनों बहनों का विवाह प्रजापति कश्यप ऋषि से हुआ था। अदिति की संतानें अग्नि, इन्द्र, वरुण, सोम आदि सभी देवता Celestial, Cosmic Divine थे, जबकि दिति की संतानें दैत्य (Dutch, Deutsche) थे। दैत्यों के पुरोहित और आचार्य शुक्र अर्थात् भृगु (Brigit / brigade) थे और जिन्हें भार्गव, अरुण, उद्दालक और कौशिक भी कहा जाता है। जिबरील, गेब्रिएल और इंजील, एन्जिल इनके ही अपभ्रंश हैं। ये सभी ऋषि अंगिरा अर्थात् Angel हैं।
परशुराम इन्ही भार्गव के कुल में उत्पन्न हुए। परशु का ही अपभ्रंश वर्तमान फारस है। और इससे ही व्युत्पन्न है :
इटैलियन "फासीवाद" (Fascism) की मुद्रा / icon घास या लकड़ी के गट्ठर पर रखा परशु / कुल्हाड़ी है।
कठोपनिषद् और श्रीमद्भग्वद्गीता में वर्णित "उशना" ही भृगु ऋषि के ही कुल में वाजश्रवा के रूप में उत्पन्न हुए थे नचिकेता उनका ही पुत्र था।
उशन् ह वाजश्रवसः ...(कठोपनिषद्) और कवीनामुशना कविः (श्रीमद्भगवद्गीता) में इनका ही उल्लेख है।
इन्द्र ने संग्राम में दिति के पत्रों का संहार किया तो दिति ने पुनः इस संकल्प के साथ गर्भ धारण किया कि इससे उत्पन्न पुत्र इन्द्र और दूसरे भी सभी देवताओं को परास्त कर देगा।
जब दिति गर्भवती हुई तो इन्द्र "मौसी" की सेवा-टहल करने के बहाने हर समय उनके साथ रहने लगा। वह जानता था कि दिति के गर्भ में पल रहा शिशु "इन्द्रशत्रु", जन्म लेने के बाद उसे और दूसरे भी सभी देवताओं को परास्त कर उनका राज्य छीन लेगा।
ऐसे ही एक दिन दिति अपनी शैया पर बैठी हुई विश्राम कर रही थी और उसे झपकी लग गई। इन्द्र इसी अवसर की ताक में था। जब दिति सो रही थी और उसके केश शैया से बाहर झूल रहे थे। जैसे ही केश धरती को छूने लगे, इन्द्र उन केशों के माध्यम से दिति के भीतर प्रविष्ट हो गया और दिति के गर्भ में पहुँच गया वहाँ जाकर गर्भ के सात टुकड़े कर दिये। जब गर्भ रोने लगा तो दिति की निद्रा भंग हुई। तब इन्द्र पुनः दिति के केशों के मार्ग से बाहर निकल आया। दिति ने समझ लिया कि प्रमादवश उसकी भूल से ही इन्द्र को यह अवसर मिला था। तब वह इन्द्र के छल पर हँसने लगी। गर्भस्थ शिशु के सात टुकड़े है जाने पर और उसके रुदन को सुनने पर इन्द्र ने हँसते हुए उससे कहा -
मा रुद्
रोओ मत।
इस प्रकार मरुत् का जन्म हुआ।
गर्भ से बाहर आकर उन सात के समूह में से प्रत्येक की सात विशेषताओं के कारण उन्हें कुल ४९ मरुद्गणों का रूप प्राप्त हुआ -
पवन चले उनचास।
उनचास कोटि प्राण।।
इसलिए पवनपुत्र जो अञ्जनिपुत्र और केसरीपुत्र भी हैं, रुद्र के भी अंश हैं।
सप्तर्षि आकाश में स्थित ऋषिगण हैं, सप्त स्वर ऋषि नारद के द्वारा उद्घाटित किए गए।
सप्त द्वीपों का निर्माण ब्रह्मा के पुत्र विश्वकर्मा ने किया।
और तीन ग्राम ही तीन गुण हैं।
सप्त सुरन तीन ग्राम उनचास कोटि प्रान।
मुनिजन सब करत गान, नादब्रह्म जागे।।
सुर अलौकिक अलंकार, मूर्च्छना विविध प्रकार।।
तन मन सब वार वार अर्पन प्रभु आगे।।
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